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{882} अस्तेयं ब्रह्मचर्यश्च त्यागोऽलोभस्तथैव च। व्रतानि पञ्च भिक्षूणामहिंसापरमाणि वै॥
(मा.पु. 41/16) योगियों के ये पांच व्रत हैं-(1) अस्तेय, (2) ब्रह्मचर्य, (3) त्याग, (4) अलोभ तथा अन्तिम (5) अहिंसा।
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तत्र अहिंसा सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानाम् अनभिद्रोहः। उत्तरे च यम# नियमाःतन्मूलाः,तत्सिद्धिपरतयैव तत्प्रतिपादनाय प्रतिपाद्यन्ते, तदवदातरूपकरणाय
उपादीयन्ते। तथा चोक्तम्-स खलु अयं ब्राह्मणो यथा यथा व्रतानि बहूनि ई समादित्सते,तथा तथा प्रमादकृतेभ्यो हिंसा-निदानेभ्यो निवर्तमानः,तामेव अवदातरूपामहिंसां करोति।
(यो.सू. 2/30 पर व्यास-भाष्य) पांच यमों मे पहला 'यम' अहिंसा है, जिसका अर्थ है- समस्त प्राणियों के प्रति * द्रोह (दुर्भाव)का त्याग। उत्तरवर्ती यमों व नियमों (सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह-ये + चारों यम, और शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्राणिधान-ये पांचों नियम) का मूल # 'अहिंसा' ही है। चूंकि अहिंसा की सिद्धि होने पर ही सत्यादि की सिद्धि/सफलता सम्भव * होती है, इसलिए 'अहिंसा' के स्पष्ट प्रतिपादन के लिए ही उनका प्रतिपादन/निरूपण किया है
जाता है। कहा भी है- "यह ब्राह्मण जैसे-जैसे बहुत -से व्रतों को धारण करता जाता है, वैसे-वैसे प्रमादकृत हिंसा-हेतुओं से निवृत्त होता हुआ, उसी अहिंसा को और भी अधिकाधिक निर्मल बनाता जाता है।"
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{884} ब्रह्मचर्यं दया क्षान्तिानं सत्यमकल्कता। अहिंसाऽस्तेयमाधुर्य्यदमाश्चैते यमाः स्मृताः॥
(ग.पु. 1/105/56) ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा, ध्यान, सत्य, अकल्कता (शुद्धता), अहिंसा, अस्तेय, मधुरता, दम (इन्द्रिय-जय)-ये 'यम' हैं।
- अहिंसा कोश/251]