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अहिंसा/अहिंसक आचरणः वानप्रस्थ आश्रम में
{864} स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्याद्दान्तो मैत्रः समाहितः। दाता नित्यमनादाता सर्वभूतानुकम्पकः॥
(म.स्मृ.-6/8) (वानप्रस्थ आश्रम में साधक) सर्वदा वेदाभ्यास में लगा रहे; ठंडा-गर्म, सुखदुःख, मान अपमान आदि सभी द्वन्द्वों को सहन करे, सब से मित्रभाव रखे,मन को वश में # रखे, दानशील बने, दान न ले और सब जीवों पर दया करे।
अहिंसा/अहिंसक आचरणः संन्यास आश्रम में
{865} अहिंसा ब्रह्मचर्यं च सत्यमार्जवमेव च। अक्रोधश्चानसूया च दमो नित्यमपैशुनम्। अष्टस्वेतेषु युक्तः स्याद् व्रतेषु नियतेन्द्रियः॥ आशीर्युक्तानि सर्वाणि हिंसायुक्तानि यानि च। लोकसंग्रहधर्मं च नैव कुर्यान्न कारयेत्॥ परं नोद्वैजयेत् कंचिन्न च कस्यचिदुद्विजेत्। विश्वास्यः सर्वभूतानामग्र्यो मोक्षविदुच्यते॥
__ (म.भा.13/अनुगीता पर्व/46/29-30, 39, 41) संन्यासी को चाहिए कि वह अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य, सरलता, क्रोध का अभाव, मदोष-दृष्टि की त्याग, इन्द्रिय-संयम और चुगली न खाना-इन आठ व्रतों का सदा सावधानी # के साथ पालन करे। इन्द्रियों को वश में रखे। जितने भी कामना और हिंसा से युक्त कर्म हैं,
उन सबका एवं लौकिक कर्मों का न स्वयं अनुष्ठान करे और न दूसरों से करावे। किसी दूसरे ॐ प्राणी को उद्वेग में न डाले और स्वयं भी किसी से उद्विग्न न हो। जो सब प्राणियों का ॐ विश्वासपात्र बन जाता है, वह सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष-धर्म का ज्ञाता कहलाता है।
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1866) भिक्षोर्धर्मः शमोऽहिंसा।
(भा.पु. 11/19/42) शान्ति तथा अहिंसा-ये संन्यासी के प्रधान धर्म हैं। 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那 विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/246