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{855} न कुर्याद्दुःखवैराणि विवादं चैव पैशुनम्।
(कू.पु. 2/16/33) गृहस्थ दुःखप्रद शत्रुता, विवाद व पिशुनता (चुगलखोरी) का व्यवहार किसी से न करे।
हिंसक विवाह आदि वर्ण्य
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{856 हत्वा छित्त्वा च भित्त्वा च क्रोशन्तीं रुदतीं गृहात्। प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिरुच्यते॥
(म.स्मृ. 3/33) कन्या के पक्ष वालों को मारकर या उनका अङ्गच्छेदन आदि कर और गृह या # द्वारादि को तोड़ कर ('हा पिताजी! मैं बलात्कार से अपहृत हो रही हूं' इत्यादि) चिल्लाती म तथा रोती हुई कन्या को बलात्कार से हरण करके लाना 'राक्षस' विवाह कहा गया है (जो म अधम कोटि का होने से त्याज्य है)।
हिंसा (सूना)-दोष के निवारक पांच यज्ञ
{857} पंच सूना गृहस्थस्य चुली पेषण्युपस्करः। कण्डनी चोदकुम्भश्च बध्यते यास्तु वाहयन्। तासां क्रमेण सर्वासां निष्कृत्यर्थं महर्षिभिः । पञ्च क्लृप्ता महायज्ञाः प्रत्यहं गृहमेधिनाम्॥ अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम्। होमो दैवो बलिभीतो नृयज्ञोऽतिथिपूजनम्॥ पञ्चैतान्यो महायज्ञान हापयति शक्तितः। स गृहेऽपि वसन्नित्यं सूनादोषैर्न लिप्यते॥ देवताऽतिथिभृत्यानां पितृणामात्मनश्च यः। न निर्वपति पंचानामुच्छ्वसन्न स जीवति॥
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/242