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अहिंसा/हिंसा की कसौटी पर ही सत्य/असत्य का निर्णय
{499} यद् भूतहितमत्यन्तं तत् सत्यमिति धारणा। विपर्ययकृतोऽधर्मः पश्य धर्मस्य सूक्ष्मताम्॥
(म.भा. 3/209/4; वि. ध. पु. 3 /265/13) (धर्म-व्याध का कौशिक ब्राह्मण को कथन-) जिससे परिणाम में प्राणियों का म अत्यन्त हित होता हो, वह वास्तव में सत्य है। इसके विपरीत जिससे किसी का अहित होता फ़ हो या दूसरों के प्राण जाते हों, वह देखने में सत्य होने पर भी वास्तव में असत्य एवं अधर्म
है। इस प्रकार विचार करके देखिये, धर्म की गति कितनी सूक्ष्म है।
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अनृतं तद्धि विज्ञेयं सर्वश्रेयोविरोधि तत्।
(ना. पु. 1/16/28) जो वचन सभी के कल्याण/हित का विरोधक होता है, उसे 'असत्य' जानना चाहिए।
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{501)
सत्यस्य वचनं श्रेयः सत्यं ज्ञानं हितं भवेत्। यद् भूतहितमत्यन्तं तद् वै सत्यं परं मतम्॥
(म.भा. 3/213/31) सत्य बोलना सदा कल्याणकारी है। सत्य-सम्बन्धी यथार्थ ज्ञान हितकारी होता है। जिससे प्राणियों का अत्यन्त हित होता है, उसे ही उत्तम सत्य माना गया है।
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स्त्रीषु नर्मविवाहे च वृत्त्यर्थे प्राणसंकटे। गोब्राह्मणार्थे हिंसायां नानृतं स्याज्जुगुप्सितम्॥
(भा.पु. 8/19/43) 'स्त्रियों में, हास-परिहास के समय, विवाह में , आजीविका की रक्षा के लिए, # प्राणसंकट उपस्थित हो जाने पर , गौ या ब्राह्मणों के हित के लिये तथा किसी की हिंसा (को
रोकने)में असत्य-भाषण करना निन्दनीय नहीं माना गया है।
明明明 明 明劣%% %%% %%%%%%%%%%%%%%%%%%% वैिदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/142