________________
XEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEyms
{729} ये क्रोधं संनियच्छन्ति क्रुद्धान् संशमयन्ति च। न च कुप्यन्ति भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते।।
___ (म.भा. 12/110/21) जो क्रोध को काबू में रखते, कोधी मनुष्यों को शान्त करते और स्वयं किसी भी प्राणी पर कुपित नहीं होते हैं, वे दुर्लंघ्य संकटों से पार हो जाते हैं।
與共振頻頻頻頻頻頻頻垢玩垢圳垢玩垢玩垢块頻听听听坂明明明明明明明明明明坂田坂明明明明明明明明
{730} क्षमा तु परमं तीर्थं सर्वतीर्थेषु पाण्डव। क्षमावतामयं लोकः परश्चैव क्षमावताम्॥ मानितोऽमानितो वापि पूजितोऽपूजितोऽपि वा। आक्रुष्टस्तर्जितो वापि क्षमावांस्तीर्थमुच्यते। क्षमा यशः क्षमा दानं क्षमा यज्ञः क्षमा दमः।
(म.भा.13/वैष्णव धर्म पर्व/92/ पृ.6375) पाण्डुनन्दन! समस्त तीर्थों में भी क्षमा सबसे बड़ा तीर्थ है। क्षमाशील मनुष्यों को ॐ इस लोक और परलोक में भी सुख मिलता है। कोई मान करे या अपमान, पूजा करे या है
तिरस्कार, अथवा गाली दे या डाँट बतावे, इन सभी परिस्थितियों में जो क्षमाशील बना रहता + है, वह तीर्थ कहलाता है। क्षमा ही यश, दान, यज्ञ और मनोनिग्रह है।
呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
17318
क्षमावन्तश्च धीराश्च धर्मकार्येषु चोत्थिताः। मंगलाचारसम्पन्नाः पुरुषाः स्वर्गगामिनः॥
(म.भा.,13/23/88) जो क्षमावान्, धीर, धर्म-कार्य के लिये उद्यत रहने वाले और मांगलिक आचार से सम्पन्न हैं, वे पुरुष स्वर्गगामी होते हैं।
EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/204