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{761} अक्रोधना धर्मपराः सत्यनित्या दमे रताः। तादृशाः साधवो विप्रास्तेभ्यो दत्तं महाफलम्॥ अमानिनः सर्वसहा दृढार्था विजितेन्द्रियाः। सर्वभूतहिता मैत्रास्तेभ्यो दत्तं महाफलम्॥ अलुब्धाः शुचयो वैद्या ह्रीमन्तः सत्यवादिनः। स्वकर्मनिरता ये च तेभ्यो दत्तं महाफलम्॥
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(म.भा. 13/22/33-35) ___ जो क्रोधरहित, धर्मपरायण, सत्यनिष्ठ और इन्द्रिय-संयम में तत्पर हैं, ऐसे ब्राह्मणों को श्रेष्ठ समझना चाहिये और उन्हीं को दान देने से महान् फल की प्राप्ति होती है। (अतः म उन्हीं को श्राद्ध में भोजन कराना चाहिए।) जिनमें अभिमान का नाम नहीं है, जो सब कुछ
सह लेते हैं, जिनका विचार दृढ़ है, जो जितेन्द्रिय, सम्पूर्ण प्राणियों के हितकारी तथा सब के है के प्रति मैत्रीभाव रखने वाले हैं, उनको दिया हुआ दान महान् फल देनेवाला है। जो निर्लोभ, # पवित्र, विद्वान, संकोची, सत्यवादी और अपने कर्तव्य का पालन करने वाले हैं, उनको दिया हुआ दान भी महान् फलदायक होता है।
{762} अक्रोधः सत्यवचनमहिंसा दम आर्जवम्। अद्रोहोऽनभिमानश्च ह्रीस्तितिक्षा दमः शमः॥ यस्मिन्नेतानि दृश्यन्ते न चाकार्याणि भारत। स्वभावतो निविष्टानि तत्पात्रं मानमर्हति॥
(म.भा. 13/37/8-9) क्रोध का अभाव, सत्य-भाषण, अहिंसा, इन्द्रिय-संयम, सरलता, द्रोहहीनता, अभिमानशून्यता, लज्जा, सहनशीलता, दम और मनोविग्रह-ये गुण जिनमें स्वभावतः दिखायी दें और धर्मविरुद्ध कार्य दृष्टिगोचर न हों, वे ही दान के उत्तम पात्र और सम्मान के अधिकारी हैं।
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_{763}
निर्मर्यादे चाशुचौ फरवृत्तौ, हिंसात्मके त्यक्तधर्मस्ववृत्ते। हव्यं कव्यं यानि चान्यानि राजन्, देयान्यदेयानि भवन्ति चास्मै॥
__(म.भा.12/63/6) जो ब्राह्मण मर्यादा-शून्य, अपवित्र, क्रूर स्वभाव वाला, हिंसापरायण तथा अपने ई धर्म और सदाचार का परित्याग करने वाला है, उसे हव्य-कव्य तथा दूसरे दान देना न देने ॥ केही बराबर है. अर्थात निष्फल है। 男男男男男男 男男男男男男%%%% %%%%%%%%%%%%%%、
अहिंसा कोश/2131