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- {785} अन्नं प्राणा नराणां हि सर्वमन्ने प्रतिष्ठितम्। अन्नदः पशुमान पुत्री धनवान् भोगवानपि॥ प्राणवांश्चापि भवति रूपवांश्च तथा नृप। अन्नदः प्राणदो लोके सर्वदः प्रोच्यते तु सः॥
__(म.भा. 13/63/25-26) ___ अन्न ही मनुष्यों के प्राण हैं, अन्न में ही सब प्रतिष्ठित है, अतः अन्नदान करने वाला ॐ मनुष्य पशु, पुत्र, धन, भोग, बल और रूप भी प्राप्त कर लेता है। जगत् में अन्नदान करने ॥ वाला पुरुष प्राणदाता और सर्वस्व देने वाला कहलाता है।
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{786} सर्वेषामेव दानानामन्नदानं परं स्मृतम्। सर्वेषामेव जन्तूनां यतस्तज्जीवितं फलम्।। तस्मादन्नात् प्रजाः सर्वाः कल्पे कल्पेऽसृजत् प्रभुः। तस्मादन्नात् परं दानं न भूतो न भविष्यति। अन्नदानात् परं दानं विद्यते न हि किञ्चन। अन्नाद् भूतानि जायन्ते जीवन्ति च न संशयः।।
____(सं. स्मृ., 8/83) समस्त दानों में प्राणों को कायम रखने वाले अन्न का दान सबसे बड़ा दान कहा ॐ गया है, क्योंकि समस्त प्राणियों का जीवन उसी में रहता है। प्रभु ने जिस अन्न से कल्प卐कल्प में समस्त प्रजा की सृष्टि की थी, उस अन्न के दान से बढ़ कर कोई भी बड़ा-से बड़ा ॐ दान नहीं होता है, न हुआ है और न भविष्य में भी होगा। अन्न से प्राणियों की सृष्टि होती है
है और अन्न से ही जीवधारी जीवित रहते हैं, इसमें कुछ भी संशय नहीं है।
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{787} सर्वेषामेव दानानाम्, अन्नदानं विशिष्यते। अन्नदानात् परं दानं न भूतं न भविष्यति॥
(वि.ध.पु. 3/315/1) सभी दानों में अन्नदान का सर्वोच्च/विशिष्ट स्थान है। अन्न-दान से बढ़कर कोई अन्य दान न हुआ है और न होगा।
SETURESEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE विदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/220
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