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{817} क्षमा धृतिरहिंसा च समता सत्यमार्जवम्। इन्द्रियाभिजयो धैर्य मार्दवं ह्रीरचापलम्॥ अकार्पण्यमसंरम्भः संतोषः श्रद्दधानता। एतानि यस्य राजेन्द्र स दान्तः पुरुषः स्मृतः॥ (म.भा. 5/63/14-15; 12/160/15-16 में आंशिक परिवर्तन के साथ)
__ [द्रष्टव्यः प.पु. 1/19/308-309] जिस पुरुष में क्षमा, धैर्य, अहिंसा, समदर्शिता, सत्य, सरलता, इन्द्रियसंयम, धीरता, मृदुता, लज्जा, स्थिरता, उदारता, अक्रोध, संतोष और श्रद्धा-ये गुण विद्यमान हैं, वही पुरुष दान्त (इन्द्रियविजयी )माना गया है।
{818} मदोऽष्टादशदोषः स स्यात् पुरा योऽप्रकीर्तितः। लोकद्वेष्यं प्रातिकूल्यमभ्यसूया मृषा वचः॥ कामक्रोधौ पारतन्त्र्यं परीवादोऽथ पैशुनम्। अर्थहानिर्विवादश्च मात्सर्यं प्राणिपीडनम्॥ ईर्ष्या मोदोऽतिवादश्च संज्ञानाशोऽभ्यसूयिता। तस्मात् प्राज्ञो न माद्येत सदा ह्येतद् विगर्हितम्॥
. (म.भा. 5/45/9-11) (दम अर्थात् इन्द्रिय विजय का विरोधी दोष है- मद। जितेन्द्रिय होने के लिए मद संबंधी हिंसक कार्यों से रहित होना अनिवार्य है-) मद के अठारह दोष हैं, जो पहले सूचित करके भी स्पष्ट रूप से नहीं बताये गये थे:-(1) लोगों के साथ द्वेष रखना, (2) शास्त्र के
प्रतिकूल आचरण करना, (3) गुणियों पर दोषारोपण, (4) असत्यभाषण, (5) काम, 卐 (6) क्रोध, (7) पराधीनता, (8) दूसरों के दोष बताना, (9) चुगली करना, (10) धन ॐ का (दुरुपयोग से) नाश, (11) कलह, (12) डाह, (13) प्राणियों को कष्ट पहुँचाना,
(14) ईर्ष्या, (15)हर्ष, (16) बहुत बकवाद, (17) विवेकशून्यता तथा (18) गुणों में # दोष देखने का स्वभाव। इसलिये विद्वान् पुरुष को मद के वशीभूत नहीं होना चाहिए, ॐ क्योंकि सत्पुरुषों ने इस मद को सदा ही निन्दित बताया है।
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男男男男男男男男男男男男%%%%%% [वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/230