________________
NEEEEEEEEEEEEE
S
अहिंसा और अस्तेय/अचौर्य धर्म
5555555
___{812} स्तेयादभ्यधिकः कश्चित् नास्त्यधर्म इति स्मृतिः॥ हिंसा चैषा परा दिष्टा सा चात्मज्ञाननाशिका। यदेतद् द्रविणं नाम प्राणा ह्येते बहिश्चराः॥ स तस्य हरति प्राणान् यो यस्य हरते धनम्।
___(कू. पु. 2/29/30-32) ___ चोरी से बढ़कर कोई अधर्म नहीं है- यह स्मृति-वचन है। चोरी सबसे बड़ी हिंसा है जो आत्म-ज्ञान को नष्ट करती है। धन-सम्पत्ति वास्तव में लोगों के बाह्य प्राण हैं, अतः है जो जिसकी धन-सम्पत्ति लूटता व चोरी करता है, वह उसके प्राणों का हरण (प्राण-वध)
ही करता है। (अर्थात् चोरी करना हिंसा- कार्य के समान ही है।)
;;;;
;;
{813} स्त्रीहिंसा-धनहिंसा च प्राणिहिंसा च दारुणा। हिंसा च त्रिविधा प्रोक्ता वर्जिता पंडितैनरैः॥
(वि.ध. पु. 3/252/11) पंडित लोगों ने तीन प्रकार की हिंसाओं को वर्जनीय माना है। वे हैं- (1) स्त्रीहिंसा, (2) धन- हिंसा (चोरी, डकैती आदि कर धन हडपना) (3) दारुण प्राणि-हिंसा म (निर्दयता से किसी को मारना)।
;
;;;
;;
;;;;
{814) अहिंसकस्तु यत्नेन वर्जयेत् तु परस्त्रियम्। विजनेऽपि तथा न्यस्तं परद्रव्यं प्रयत्नतः॥
(वि.ध. पु. 3/252/12) __ अहिंसक को चाहिए कि वह प्रयत्नपूर्वक पर-स्त्री का त्याग करे, साथ ही पर-द्रव्य
को भी (उसके स्वामी से आज्ञा लिये बिना) ग्रहण न करे, भले ही वह निर्जन स्थान पर पड़ा महुआ हो।
;;卐
m
听听听听听听听听听听听听听听听听玩巩巩巩巩巩听听听听听听听听听听听听發
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/228