________________
*$$$$$$$$$$$$$$$嬀消消消乐出乐乐乐
{801}
पुष्करिण्यस्तडागानि कूपांश्चैवात्र खानयेत् । एतत् सुदुर्लभतरमिहलोके द्विजोत्तम ॥ आपो नित्यं प्रदेयास्ते पुण्यं ह्येतदनुत्तमम् । प्रपाश्च कार्या दानार्थं नित्यं ते द्विजसत्तम । भुक्तेऽप्यन्नं प्रदेयं तु पानीयं वै विशेषतः ॥
(म.भा. 13/68/21-22 )
(यम का एक ब्राह्मण को कथन ) द्विजश्रेष्ठ ! मनुष्य को यहाँ पोखरी, तालाब और कुएँ खुदवाने चाहियें। यह इस संसार में अत्यन्त दुर्लभ - पुण्य कार्य है । विप्रवर! तुम्हें प्रतिदिन जल का दान करना चाहिये। जल देने के लिये प्याऊ लगानी चाहिये । यह सर्वोत्तम पुण्य कार्य है। (भूखे को अन्न देना तो आवश्यक है ही,) जो भोजन कर चुका हो, उसे भी अन्न देना चाहिये। विशेषतः जल का दान तो सभी के लिए आवश्यक है।
{802}
वापीकूपतडागानि देवतायतनानि च । अन्नप्रदानमारामाः पूर्तं धर्मं च मुक्तिदम् ॥
( अ.पु. 209/2 )
बावड़ी, कूप तथा तालाब खोदवाना, देवालय बनवाना, अन्नदान करना तथा सार्वजनिक बगीचा लगवाना -यह 'पूर्त' धर्म कहलाता है और यह मुक्ति दिलाने वाला हुआ करता है।
{803}
वापीकूपतडागादौ धर्मस्यान्तो न विद्यते । पिबन्ति स्वेच्छया यत्र जलस्थलचरास्तदा ॥
( प.पु. 3/31/51)
जहां जलचर व स्थलचर प्राणी सदा स्वेच्छा से जल पीते हों, उन वापी, कूप व तालाब आदि के निर्माण में अनन्त धर्म होता है ।
$$$$$$$
出
अहिंसा कोश / 225]