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{798} तडागे यस्य गावस्तु पिबन्ति तृषिता जलम्। मृगपक्षिमनुष्याश्च सोऽश्वमेधफलं लभेत्॥ यत् पिबन्ति जलं तत्र स्नायन्ते विश्रमन्ति च। तडागे यस्य तत् सर्वं प्रेत्यानन्त्याय कल्पते॥ दुर्लभं सलिलं तात विशेषेण परत्र वै। पानीयस्य प्रदानेन प्रीतिर्भवति शाश्वती॥
(म.भा. 13/58/17-19) जिसके तालाब में प्यासी गौएं पानी पीती हैं तथा मृग, पक्षी और मनुष्यों को भी - जल सुलभ होता है, वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। यदि किसी के तालाब में लोग स्नान करते, पानी पीते और विश्राम करते हैं तो इन सब का पुण्य उस पुरुष को मरने के बाद अक्षय सुख प्रदान करता है। जल दुर्लभ पदार्थ है। परलोक में तो उसका मिलना और भी कठिन है। जो जल का दान करते हैं, वे ही वहाँ जलदान के पुण्य से सदा तृप्त रहते हैं।
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{799} तडागारामकर्तारस्तथाऽन्ये वृक्षरोपकाः। कूपानां ये च कर्तारो दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥
(वि. ध. पु. 2/122/25) जो तालाब, बगीचे व कुंआ आदि का निर्माण करते-कराते हैं और वृक्ष लगाते हैं, वे दुर्गम संकटों को पार कर लेते हैं।
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सर्वदानैर्गुरुतरं सर्वदानैर्विशिष्यते। पानीयं नरशार्दूल तस्माद् दातव्यमेव हि॥
(म.भा. 13/58/21) जल-दान सब दानों से महान् एवं समस्त दानों से बढ़ कर है, अतः उसका दान अवश्य करना चाहिये।
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/224