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NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEma दानः मौलिक सनातन धर्म
{735} एष धर्मो महायोगो दानं भूतदया तथा। ब्रह्मचर्यं तथा सत्यमनुक्रोशो धृतिः क्षमा॥ सनातनस्य धर्मस्य मूलमेतत् सनातनम्।
(म.भा. 14/91/33-34) दान, प्राणि-दया, करुणा, क्षमा, धृति, सत्य, ब्रह्मचर्य - ये धर्म हैं तथा महायोग हैं। सनातन धर्म के ये सनातन मूल हैं।
___{736} दानं यज्ञाः सतां पूंजा वेदधारणमार्जवम्। एष धर्मः परो राजन् बलवान् प्रेत्य चेह च॥
(म.भा. 3/33/46) इह लोक और परलोक-दोनों जगह, यज्ञ ,सम्मान पूजा, वेद-स्वाध्याय, सरलता । आदि की तरह 'दान' एक उत्तम व प्रबल धर्म है।
अहिंसकः उत्तम दाता
{737} तेन दत्तानि दानानि पापेनाशुद्धबुद्धिना। तानि सर्वाण्यनादृत्य नश्यन्ति विपुलान्यपि॥ तस्याधर्मप्रवृत्तस्य हिंसकस्य दुरात्मनः। दानेन कीर्तिर्भवति न प्रेत्येह च दुर्मतेः॥ धर्म-वैतंसिको यस्तु पापात्मा पुरुषाधमः। ददाति दानं विप्रेभ्यो लोकविश्वासकारणम्॥
(म.भा. 14/91/25-26,28) अशुद्ध बुद्धि वाले पापी पुरुष द्वारा कितना ही अधिक दान दिया जाय, वह सारा * का सारा अनादृत/ तिरस्कृत होता हुआ नष्ट/व्यर्थ हो जाता है।
अधर्म में प्रवृत्त दुर्बुद्धि, दुरात्मा व हिंसापरायण व्यक्ति दान करने पर भी इहलोक व ॐ परलोक-दोनों में कीर्ति नहीं प्राप्त करता। वह पापात्मा व नराधम धर्म का तो ढोंग करता है। " ॐ ब्राह्मणों आदि को दान तो वह इसलिए देता है ताकि लोक में (उसके अपने धर्मात्मा होने ज का) विश्वास जम जाय।
男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男明: वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/206