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क्षुधितस्य द्विजस्यास्ये यत्किञ्चिद्दीयते यदि। प्रेत्य पीयूषधाराभिः सिंचते कल्पकोटिकम्॥
(प.पु. 3/61/55) __ किसी भूखे ब्राह्मण के मुख में जो कुछ भी दिया जाता है, वह पर-लोक में करोड़ों कल्पों तक अमृत-धारा बन कर दाता को सिंचित करता है।
{742} अभयस्य प्रदानेन नरः स्यात्सर्वकामदः। अश्वमेधफलं तस्य यो रक्षेच्छरणागतम्॥
(वि. ध. पु. 3/302/6) जो व्यक्ति अभयदाता होता है, वह समस्त कामनाओं का प्रदाता होता है। जो शरणागत की रक्षा करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।
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{743} वधकस्य हस्तगतं पशुं क्रीत्वा नरोत्तमः। नाकलोकमवाप्नोति सुखी सर्वत्र जायते॥
(वि. ध. पु. 3/302/24) जो वधक/कसाई के हाथ में गए हुए पशु को खरीदता है और उसके प्राण बचाता है, वह पुरुष-श्रेष्ठ इस लोक में सर्वत्र सुख प्राप्त करता है और (मर कर) स्वर्ग-लोग प्राप्त करता है।
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दीनश्च याचते चायमल्पेनापि हि तुष्यति। इति दद्यात् दरिद्राय कारुण्यादिति सर्वथा॥
__(म.भा.13/138/10) यह बेचारा बड़ा गरीब है और मुझसे याचना कर रहा है, यह दयामूलक दान है। थोड़ा देने से भी संतुष्ट हो जाएगा-यह सोचकर दरिद्र मनुष्य के लिये सर्वथा दयावश दान # देना चाहिये।
男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%%%%%%% वैिदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/208