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“明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明男男男男男男男男男男男男男 कृपणता=नशंसता/हिंसात्मक कार्य
{750} याचमानमभीमानाद् अनासक्तमकिंचनम्। यो नार्चति यथाशक्ति स नृशंसो युधिष्ठिर॥
(म.भा. 13/59/9) जो अनासक्त अकिंचन याचक की, अपने अभिमान के कारण, यथाशक्ति (दान 卐 देकर) पूजा-अर्चना (सत्कार आदि) नहीं करता है, वह मनुष्य 'निर्दय' ही है।
{751} एकः सम्पन्नमश्नाति वस्ते वासश्च शोभनम्। योऽसंविभज्य भृत्येभ्यः को नृशंसतरस्ततः॥
(म.भा. 5/33/41) जो अपने द्वारा भरण-भोषण के योग्य व्यक्तियों को बांटे बिना, अकेले ही उत्तम भोजन करता और अच्छा वस्त्र पहनता है, उससे बढ़कर क्रूर कौन होगा?
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{752} भक्ष्यं पेयमथालेह्यं यच्चान्यत् साधु भोजनम्। प्रेक्षमाणेषु योनीयात्, नृशंसमिति तं वदेत्॥ ब्राह्मणेभ्यः प्रदायाग्रं, यः सुहृद्भ्यः सहाश्रुते। स प्रेत्य लभते स्वर्गमिह चानन्त्यमश्रुते॥
(म.भा. 12/154/11-12) दूसरे लोग देखते रहें, फिर भी उनके सामने ही जो उत्तम भक्ष्य, पेय आदि पदार्थों 1 को (अकेला ही)खाता है, उसे नृशंस/निर्दय ही कहना चाहिए। किन्तु जो (स्वयं खाने से)
पहले ब्राह्मणों (धर्मात्मा ज्ञानी जनों) को देकर, फिर मित्र-वर्ग के साथ भोजन करता है, ॐ वह इस लोक में अनन्त सुख पाता है और मर कर स्वर्ग लोक में जाता है।
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{753} अददानमश्रद्दधानमयाजमानमाहुरासुरो बत।
(छांदो. 8/8/5) जो दान नहीं देता, श्रेष्ठ आदर्शों के प्रति श्रद्धा नहीं रखता, और यज्ञ (लोकहितकारी सत्कर्म) नहीं करता, उसे 'असर' कहते हैं।
विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/210