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क्षमा व क्षमाशीलः प्रशंसनीय
{717}
यः समुत्पादितं कोपं क्षमयैव निरस्यति ॥ इह लोके परत्रासौ, अत्यन्तं सुखमश्रुते । क्षमायुक्ता हि पुरुषा लभन्ते श्रेय उत्तमम् ॥
(स्कं. पु. वैष्णव./का./11/18-19) जो व्यक्ति उद्बुद्ध क्रोध को क्षमा से शान्त कर देता है, वह इस और उस- दोनों लोकों में अति सुख प्राप्त करता है । ये क्षमाशील पुरुष ही हैं जो उत्तम श्रेय की उपलब्धि करते हैं।
{718}
येषां मन्युर्मनुष्याणां क्षमयाऽभिहतः सदा । तेषां परतरे लोकास्तस्मात् क्षान्तिः परा मता ॥
(म.भा. 3/29/44)
जिन मनुष्यों का क्रोध सदा क्षमाभाव से दबा रहता है, उन्हें सर्वोत्तम लोक प्राप्त होते हैं। अतः क्षमा सबसे उत्कृष्ट मानी गयी है ।
{719}
बहुधा वाच्यमानोऽपि यो नरः क्षमयाऽन्वितः ॥ तमुत्तमं नरं प्राहुर्विष्णोः प्रियतरं तथा ।
( वा.रामा. माहात्म्य 4/19-20 )
जो मनुष्य बारंबार दूसरों की गाली सुनकर भी क्षमाशील बना रहता है, वह उत्तम व्यक्ति कहलाता है । उसे परमेश्वर का भी अत्यन्त प्रियजन माना गया है।
{720}
द्वाविमौ पुरुषौ राजन् स्वर्गस्योपरि तिष्ठतः ।
प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ॥
( म.भा. 5 / 33 /58, विदुरनीति 1/58; वि. ध. पु. 1 / 218 / 17 )
दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- एक वह जो शक्तिशाली होते हुए भी क्षमा करे, और दूसरा वह जो निर्धन होने पर भी 'दान' दे।
अहिंसा कोश / 201]