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{708}
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आक्रोशपरिवादाभ्यां विहिंसन्त्यबुधा बुधान् ।
वक्ता पापमुपादत्ते क्षममाणो विमुच्यते ॥
(म.भा. 5/34/74, विदुरनीति 2/74)
मूर्ख मनुष्य विद्वानों को गाली और निन्दा से कष्ट पहुंचाते हैं। गाली देने वाला तो
पाप का भागी होता है, किन्तु क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।
{709}
क्षमा गुणो हि जन्तूनामिहामुत्र सुखप्रदः ।
(आ. स्मृ., 10 / 5 ) क्षमा प्राणियों का एक ऐसा अद्भुत गुण है, जो इस संसार में और परलोक में भी सुख प्रदान करता है।
{710}
मुक्तिमिच्छसि चेत् तात, विषयान् विषवत् त्यज । क्षमार्जवं दयां तोषं, सत्यं पीयूषवद् भज ॥
( चाणक्य नीति 9 /76) यदि आप मुक्ति की इच्छा करते हैं, तो विषयों को विष मानकर उनका त्याग कर दीजिए। क्षमा, सरलता, संतोष और सत्य को अमृत समझकर उन्हें धारण कीजिए ।
{711}
क्षमातुल्यं तपो नास्ति, न संतोषात् परं सुखम् ।
न च तृष्णा-परो व्याधिः, न च धर्मो दया- परः ॥
(लघु चाणक्य, 3 / 203)
क्षमा बराबर तप नहीं, संतोष से बढ़ कर सुख नहीं, तृष्णा से बढ़ कर रोग नहीं, और भूत - दया से बढ़कर धर्म नहीं है।
{712}
क्षमैका शान्तिरुत्तमा ।
( म.भा. 5 / 33 /52, विदुरनीति 1/ 52 )
एकमात्र क्षमा ही शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
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अहिंसा - विश्वकोश / 199]