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{713} नातः श्रीमत्तरं किंचिदन्यत् पथ्यतमं मतम्। प्रभविष्णोर्यथा तात क्षमा सर्वत्र सर्वदा॥
(म.भा. 5/39/58) समर्थ पुरुष के लिये सब जगह और सब समय में क्षमा के समान हितकारक और अत्यन्त श्रीसम्पन्न बनाने वाला उपाय दूसरा नहीं माना गया है।
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क्षमा दानं क्षमा सत्यं क्षमा यज्ञाश्च पुत्रिकाः॥ क्षमा यशः क्षमा धर्मः क्षमायां विष्टितं जगत् ॥
____ (वा.रामा. 1/33/8-9) क्षमा दान है, क्षमा सत्य है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा यश है और क्षमा धर्म है। क्षमा पर 卐 ही यह सम्पूर्ण जगत् टिका हुआ है।
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{715} क्षमावतो जयो नित्यं साधोरिह सतां मतम्॥
(म.भा. 3/29/14) ___ संत जनों का यह विचार है कि इस जगत में क्षमाशील सज्जन पुरुषों की सदा जय भी होती है।
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{716} येषां मन्युर्मनुष्याणां क्षमयाऽभिहतः सदा। तेषां परतरे लोकास्तस्मात् क्षान्तिः परा मता॥
(म.भा. 3/29/44) जिन मनुष्यों का क्रोध सदा क्षमाभाव से दबा रहता है,उन्हें सर्वोत्तम लोक प्राप्त होते * हैं। अतः क्षमा सबसे उत्कृष्ट मानी गयी है।
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[वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/200