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{694}
क्षान्त्यास्पदं वै ब्राह्मण्यं क्रोधसंयमनं तपः ॥
क्रोध के नियंत्रण रूप तप का ही नाम 'क्षमा' है। क्षमा ही ब्राह्मणत्व है।
{695}
आकुष्टोऽभिहतो यस्तु नाक्रोशेत्प्रहरेदपि । अदुष्टो वांग्मनःकायैस्तितिक्षा सा क्षमा स्मृता ॥
(म.पु. 145/46)
जो निन्दित होने पर बदले में निन्दक की निन्दा नहीं करता तथा आघात किये जाने
पर भी बदले में उस पर प्रहार नहीं करता, अपितु, मन, वचन व शरीर से प्रतीकार की भावना से रहित हो उसे सहन कर लेता है, उसकी उस क्रिया को 'क्षमा' कहते हैं। {696}
विगर्हातिक्रमाक्षेपहिंसाबन्धवधात्मनाम् । अन्यमन्युसमुत्थानां दोषाणां मर्षणं क्षमा ॥
( मा.पु. 60/20 )
(कू.पु. 2/15/30; प.पु. 3/54/28) निन्दा, आक्रमण, आक्षेप, हिंसा, बन्धन व हत्या करने वाले लोगों (के दुराचरण) तथा दूसरों के क्रोध से उत्पन्न दोषों को सह लेना 'क्षमा' है ।
[वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 196
{697} क्षमा द्वन्द्व-सहिष्णुत्वम्।
( म.भा. 3/313/88)
मान-अपमान, सुख-दु:ख, अनुकूलता - प्रतिकूलता- इन द्वन्द्वों को सहन करना ही 'क्षमा' है।
{698}
आक्रुष्टो निहतो वापि नाक्रोशेद्यो न हन्ति च । वाङ्मनःकर्मभिर्वेति तितिक्षैषा क्षमा स्मृता ॥
(ब्रह्म. पु. 2/32/49)
कोई दूसरा आक्रोश करे तो उस पर आक्रोश न करे, कोई मारे तो उसे न मारे, इस प्रकार मन, वचन व कर्म से आकोशकारी व घातक के प्रति सहनशीलता का होना
यह 'क्षमा' है।
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