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क्षमाः सत्पुरुषों व वीरों का अलंकार
{685} अलंकारो हि नारीणां क्षमा तु पुरुषस्य वा।
(वा.रामा. 1/33/7) स्त्री हो या पुरुष,उसके लिये क्षमा ही आभूषण है।
{6868 क्षमा तेजस्विनां तेजः क्षमा ब्रह्म तपस्विनाम्। क्षमा सत्यं सत्यवतां क्षमा यज्ञः क्षमा शमः॥
(म.भा. 3/29/40) क्षमा तेजस्वी पुरुषों का तेज है, क्षमा तपस्वियों का ब्रह्म है, और क्षमा सत्यवादी पुरुषों का सत्य है। क्षमा ही यज्ञ है और क्षमा ही शम (मनोनिग्रह) है।
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अनसूया क्षमा शान्तिः संतोषः प्रियवादिता। कामक्रोधपरित्यागः शिष्टाचारनिषेवणम्॥ कर्म च श्रुतसम्पन्नं सतां मार्गमनुत्तमम्।
__(म.भा. 3/207/96-97) क्षमा, शान्ति, संतोष, प्रियभाषण और काम व क्रोध का त्याग, दोष-दृष्टि का # अभाव, शिष्टाचार का सेवन और शास्त्र के अनुकूल कर्म करना-यह श्रेष्ठ पुरुषों का अति # उत्तम मार्ग है।
{688} सुजनो न याति वैरं परहितनिरतो विनाशकालेऽपि। छेदेऽपि चन्दनतरुः सुरभीकरोति मुखं कुठारस्य॥
(वा.रामा.माहात्म्य 4/21) दूसरों के हित-साधन में लगे रहने वाले साधुजन किसी के द्वारा अपने विनाश का समय उपस्थित होने पर भी उसके साथ वैर नहीं करते। चन्दन का वृक्ष स्वयं को काटने वाले ॐ कुठार की धार को भी सुगन्धित ही करता है।
%%% %% % %%%%%%%% % %%%%% %%%% 、 विदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/194