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अहिंसक वचन का सुप्रभाव
15772 प्रियवाक्यप्रदानेन, सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। तस्माद् तदेव वक्तव्यं, वचने का दरिद्रता॥
(चाणक्य-नीति 16/115) प्रिय वाक्यों के बोलने से सभी प्राणी प्रसन्न होते हैं। अतः प्रिय ही बोलना चाहिए। आखिर, बोलने में दरिद्रता क्यों?
{578} सान्त्वेनान्नप्रदानेन प्रियवादेन चाप्युत। समदुःखसुखो भूत्वा स परत्र महीयते॥
(म.भा.12/297/36) जो सब लोगों को सांत्वना प्रदान करता, भूखों को भोजन देता और प्रिय वचन बोल कर सब का सत्कार करता है, वह सुख-दुख में सम रहकर (इहलोक और) परलोक में प्रतिष्ठित होता है।
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{5791 द्वे कर्मणी नरः कुर्वन्, अस्मिंल्लोके विरोचते। अब्रुवन् परुषं किंचित्, असतोऽनर्चयंस्तथा।
(म.भा. 5/33/54, विदुरनीति 1/54) जरा भी कठोर न बोलना तथा दुष्ट लोगों को मान-सम्मान न देना-इन दो कामों को करने वाला मनुष्य इस लोक में विशेष शोभा पाता है।
{580} आदानादपि भूतानां मधुरामीरयन् गिरम्। सर्वलोकमिमं शक्र सान्त्वेन कुरुते वशे॥
(म.भा. 12/84/8) __ मधुर वचन बोलने वाला मनुष्य लोगों की कोई वस्तु ले भी ले तो भी वह अपनी मधुर वाणी द्वारा इस सम्पूर्ण जगत् को वश में कर लेता है।
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अहिंसा कोश/163]