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तिष्ठन् गृहे चैव मुनिर्नित्यं शुचिरलंकृतः। यावजीवं दयावांश्च सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
(म.भा. 3/200/101) जो सद्गुण-सम्पन्न व्यक्ति निरन्तर घर पर भी पवित्र भाव से रहते हुए, जीवन भर सब प्राणियों पर दया रखता है, उसे मुनि ही समझना चाहिए। वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।
{659} खराश्वोष्ट्रमृगेभानामजाविकवधस्तथा । संकरीकरणं ज्ञेयं मीनाहिमहिषस्य च॥
(म.स्मृ. 11/68) गधा, कुत्ता, मृग (हिरण), हाथी, अज (खसी,), भेड़, मछली, सांप और भैंसा, # इनमें से किसी को भी मारना मनुष्य को वर्णसङ्कर के दोष से दूषित करने वाला होता है।
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सर्वहिंसानिवृत्ताश्च नराः सर्वंसहाश्च ये। सर्वस्याश्रयभूताश्च ते नराः स्वर्गगामिनः॥
(म.भा. 13/23/92) जो सब प्रकार की हिंसाओं से अलग रहते हैं, सब कुछ सहते हैं और सबको आश्रय देते रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं।
{661} बालवृद्धेषु कौन्तेय सर्वावस्थं युधिष्ठिर। अनुक्रोशक्रिया पार्थ सर्वावस्थं पदं भवेत्॥
(म.भा. 12/66/20) जो बालकों और बूढ़ों के प्रति दयापूर्ण बर्ताव करता है, उसे भी सभी आश्रम-धर्मों : के सेवन का फल प्राप्त होता है।
आनृशंस्यं परो धर्मः। (म.भा. 3/313/76; 3/313/129; ना. पु. 1/60/49; वि. ध. पु. 3/270/1)
लोक में 'दया' श्रेष्ठ धर्म है। 男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男飛
अहिंसा कोश/187]
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