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{674} विनष्टः पश्यतस्तस्य रक्षिणः शरणं गतः। आनाय सुकृतं तस्य सर्वं गच्छेदरक्षितः।। एवं दोषो महानत्र प्रपन्नानामरक्षणे। अस्वयं चायशस्यं च बलवीर्यविनाशनम्॥
___ (वा.रामा. 5/18/30-31) यदि शरण में आया हुआ पुरुष संरक्षण न पाकर उस रक्षक के देखते-देखते विनाश को प्राप्त हो जाय, तो वह (मर कर शरणागत पुरुष) उसके सारे पुण्य को अपने साथ ले जाता है। इस प्रकार शरणागत की रक्षा न करने से महान् दोष बताया गया है। शरणागत की रक्षा न कर पाना स्वर्ग और सुयश की प्राप्ति को मिटा देता है और मनुष्य के बल और पराक्रम का नाश करता है (अर्थात्, उसकी सार्थकता को समाप्त कर देता है)।
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{675} बलात्कृतेषु भूतेषु परित्राणं कुरूद्वह। शरणागतेषु कौरव्य कुर्वन् गार्हस्थ्यमावसेत्॥
(म.भा. 12/66/21) जिन प्राणियों पर बलात्कार हुआ हो और वे शरण में आये हों, उनका संकट से उद्धार करने वाला पुरुष गार्हस्थ्य-धर्म (के पालन से मिलने वाले पुण्यफल) का भागी होता है।
शरणागत पर दया/करुणाः श्रेष्ठता की पहचान
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यस्तु शत्रोर्वशस्थस्य शक्तोऽपि कुरुते दयाम्। हस्तप्राप्तस्य वीरस्य तं चैव पुरुषं विदुः॥
(म.भा.12/227/23) जो शक्तिशाली होकर भी अपने वश में पड़े हुए अथवा हाथ में आए हुए वीर शत्रु म पर दया करता है, उसे ही अच्छे लोग उत्तम पुरुष मानते हैं।
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अहिंसा कोश/191]