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1591 प्रियवाक्यात् परं लोके नास्ति संवननं परम्।
(वि. ध. पु. 3/294/5) प्रिय वचन बोलने से ज्यादा प्रभावकारी कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है।
{592} सत्यवादी जितक्रोधो ब्रह्मभूयाय कल्पते।
(कू.पु. 2/15/21) सत्यवादी और क्रोध-जयी व्यक्ति 'ब्रह्म' रूप पाने के योग्य हो जाता है।
{593} प्रणीतिरस्तु सूनृता।
(ऋ. 6/48/20)
सत्य एवं प्रिय वाणी ही ऐश्वर्य देने वाली है।
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अहिंसकः कटुवचन सन कर भी अनद्विग्न
{594} दुर्वाक्यं दुःसहं राजंस्तीक्ष्णास्त्रादपि जीविनाम्। संकटेऽपि सतां वक्त्राद् दुरुक्तिर्न विनिर्गता॥
__ (ब्र.वै.पु. 3/35/64) जीवों का कटुवचन तीक्ष्ण अस्त्र से भी दुःसह होता है। कितना ही बड़ा संकट क्यों न हो, सज्जनों के मुख से कभी भी बुरी बात नहीं निकलती है।
{595} हदि विद्ध इवात्यर्थं यथा संतप्यते जनः। पीडितोऽपि हि मेधावी न तां वाचमुदीरयेत्॥
(शु.नी. 1/167) पीड़ित होने पर भी बुद्धिमान् व्यक्ति ऐसी वाणी न बोले, जिससे सुनने वाले व्यक्ति 卐 के हृदय में बाण जैसी लगे और वह अत्यन्त छटपटाने लगे।
%%%%%%%%%男男男男男男男男男男男男男男男男男男%%%%% वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/166