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{600 साधवो ये महाभागाः संसारान्मोक्षकांक्षिणः। न कस्मैचित्प्रकुप्यंति निन्दितास्ताडिता अपि॥ क्षमाधना महाभागा ये च दान्तास्तपस्विनः। तेषां चैवाक्षया लोकाः सततं साधुकारिणाम्॥ यस्तु दुष्टैस्तु दण्डाद्यैर्वचसाऽपि च ताडितः। न च क्षोभमवाप्नोति स साधुः परिकीर्त्यते॥
___(ब्रह्म.पु. 3/31/9-11) जो संसार से मुक्ति चाहते हैं, निन्दित व ताडित होने पर भी जो किसी के प्रति कुपित # नहीं होते, क्षमा ही जिनका धन है, इन्द्रिय-जयी व तपस्वी हैं, वे महाभाग 'साधु' हैं। सभी
का हित करने वाले उन साधु पुरुषों को अक्षय लोक प्राप्त होते हैं। 'साधु' वही है, जो दुष्टों द्वारा दण्ड आदि से या वाणी से ताडित होने पर भी मन में कोई क्षोभ नहीं करता।
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{601} अतिवादस्तितिक्षेत नाभिमन्येत कंचन। क्रोध्यमानः प्रियं ब्रूयादाक्रुष्टः कुशलं वदेत्॥
म.भा.12/278/6)
यदि कोई अपने प्रति अमर्यादित बात कहे-निन्दा या कटुवचन सुनाये तो मुमुक्षु पुरुष उसके उन वचनों को चुपचाप सह ले। किसी के प्रति अहंकार या घमंड न प्रकट करे। कोई क्रोध करे तो भी उससे प्रिय वचन ही बोले। यदि कोई गाली दे तो भी उसके प्रति हितकर वचन ही मुँह से निकाले।
{602} परश्चेदेनमभिविध्येत बाणैर्भृशं सुतीक्ष्णैरनलार्कदीप्तैः। स विध्यमानोऽप्यतिदह्यमानो विद्यात् कविः सुकृतं मे दधाति॥
__(म.भा. 5/36/9,विदुरनीति 4/9) यदि किसी को कोई दूसरा व्यक्ति अग्नि और सूर्य के समान दग्ध करने वाले अत्यन्त 卐 तीखे (वाणी रूपी) बाणों से बहुत चोट पहुंचावे तो वह विद्वान पुरुष चोट खाकर अत्यन्त ॐ वेदना सहते हुए भी ऐसा समझे कि वह मेरे पुण्यों को ही पुष्ट कर रहा है।
第一勇勇勇勇勇男明明明明明明明明明明勇%%%%%%%%%%%%%、 विदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/168