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दया के पात्रः प्राणिमात्र
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पापानां वा शुभानां वा वधार्हाणामथापि वा। कार्यं कारुण्यमार्येण न कश्चिन्नापराध्यति॥
__ (वा.रामा. 5/113/45) कोई पापी हों या पुण्यात्मा, अथवा वध के योग्य अपराध करने वाले ही वे क्यों न भ हों, श्रेष्ठ पुरुष को चाहिये कि उन सब पर दया करे, क्योंकि ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है,
जिससे कभी अपराध हुआ या होता ही न हो।
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लोकहिंसाविहाराणां क्रूराणां पापकर्मणाम्। कुर्वतामपि पापानि नैव कार्यमशोभनम्॥
(वा.रामा. 5/113/46) जो लोगों की हिंसा में ही रमते (आनन्दित होते) हैं, उन पापाचारी व क्रूरस्वभावी लोगों का भी कभी अमंगल नहीं करना चाहिये।
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{626} अहिंसकानि भूतानि दण्डेन विनिहन्ति यः। आत्मनः सुखमन्विछन् स प्रेत्य न सुखी भवेत्॥
(म.भा. 13/113/5) जो मनुष्य अपने को सुख देने की इच्छा से अहिंसक प्राणियों को भी डंडे से मारता है, वह कभी परलोक में सुखी नहीं होता है। .
{627} निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु , दयां कुर्वन्ति साधवः। न हि संहरते ज्योत्स्नां,चन्द्रश्चाण्डालवेश्मनि॥
(चाणक्य-नीतिशास्त्र-155) सज्जन पुरुष गुणहीन प्राणियों पर भी दया करते हैं। जैसे चांद अपनी चांदनी को चाण्डाल के घर से नहीं हटाता।
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अहिंसा कोश/177]