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दुर्जनेष्वपि सत्त्वेषु दयां कुर्वन्ति साधवः॥
(ना. पु. 1/9/23)
सत्यपुरुष दुर्जन प्राणियों पर भी दया करते हैं।
दयापूर्ण व्यवहारः पालतू पशुओं के प्रति
{629) रोधनं बन्धनं चैव भारप्रहरणं तथा। दुर्गप्रेरण-योक्त्रं च निमित्तानि वधेषु षट्॥
(प.स्मृ. 9/31) घेर कर रोकना, बाँधना, भार लादना, आघात करना, कठिन स्थानों पर चराने के # लिए ले जाना जुए में जोतना-ये छः कर्म वध (मृत्यु) में कारण होते हैं (इन कार्यों से बैल + के वध-तुल्य पीड़ा होने की सम्भावना रहती है, अतः सावधानी बरते)।
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{630} द्वौ मासौ दापयेद् वत्सं द्वौ मासौ द्वौ स्तनौ दुहेत्। द्वौ मासावेकवेलायां शेषकाले यथारुचि।।
(आ. स्मृ., 3/20-21) व्याई हुई गौ का दूध दो मास तक उसके बच्चे को पिलावे और इसके बाद दो | मास तक केवल दो स्तनों का ही दूध लेवे अर्थात् दुहे। दो मास तक केवल एक समय (दिन
में या सायंकाल, केवल एक बार) ही दूध का दोहन करे, बाद में अपनी इच्छा के म अनुसार दूध लिया जा सकता है। (अर्थात् ब्याही हुई गौ का दूध सारा निकालने पर उसका ॐ बछड़ा भूखा रह सकता है, जिससे उस गौ को पीड़ा हो सकती है। अत: अहिंसक व्यक्ति म उक्त हिंसक कार्य से बचे।)
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{631} यः शतौदनां पचति कामप्रेण स कल्पते।
(अ.10/9/4) ___ जो सैकड़ों लोगों को अन्न-भोजन देने वाली (शतौदना) गौ का पालन पोषण # करता है, वह अपने संकल्पों को पूर्ण करता है।
वैदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/178