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(原名:
{641}
स्थिराङ्गं नीरुजं दृप्तं सुनर्दं षण्ढवर्जितम् । वाहयेद्दिवसस्यार्द्धं पश्चात्स्नानं समाचरेत् ॥
(प.स्मृ. 2/4)
जिस बैल के अङ्ग दृढ़ हों, जो रोगरहित हो, दर्प से भरा हो, गर्जना करता हो, और बधिया न हो ऐसे बैल को आधा दिन ही जोते, बाद में स्नान करे।
{642}
पशूंश्च ये वै बध्नन्ति ये चैव गुरुतल्पगाः । प्रकीर्णमैथुना ये च क्लीबा जायन्ति वै नराः ॥
(ब्रह्म.पु. 117/52)
जो व्यक्ति पशुओं को बांध कर रखते हैं, गुरु-पत्नी से समागम करते हैं, जहां कहीं भी व्यभिचार करते हैं, वे मर कर दूसरे जन्म में नपुंसक होते हैं।
{643}
न नारिकेलबालाभ्यां न मुञ्जेन न चर्म्मणा । एभिर्गास्तु न बध्नीयाद् बद्ध्वा परवशो भवेत् । । कुशैः काशैश्च बध्नीयाद् वृषभं दक्षिणामुखम् ।
( आ. स्मृ. 1/25-26 )
नारियल के बने हुए रस्सों से, बालों की रस्सी से, मूंज की और चमड़े की रस्सी से गौ-वंशज (बैल) को नहीं बाँधना चाहिए (क्योंकि ये कठोर होती हैं)। कुश या घास की बनी हुई रस्सियों से ही बैलों को दक्षिणाभिमुख कर बांधना चाहिए।
{644}
न नारिकेलैर्न च शाणबालै र्न चाऽपि मौजैर्न च वल्कश्रृङ्खलैः ।
तैस्तु गावो न निबन्धनीया बद्ध्वाऽपि तिष्ठेत् परशुं गृहीत्वा ॥
(प.स्मृ. 9/33)
नारियल, सन, बाल, मूंज, पेड़ के छाल की रस्सी तथा लोहे की जंजीर से कभी
किसी गाय या बैल को न बांधे। यदि बांध ही दे, तो उसे काटने के लिए शस्त्र (परशु) लेकर
खड़ा रहे (ताकि जब उसे पीड़ा हो तो तुरन्त रस्सी काट सके) ।
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अहिंसा कोश / 183]