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{635} विषमं वाहयेद् यस्तु दुर्बलं सबलं तथा। स गोहत्यासमं पापं प्राप्नोतीह न संशयः॥ यो वाहयेद् विना सस्यं खादंतं गां निवारयेत्। मोहात्तृणं जलं वापि स गोहत्यासमं लभेत्॥
__ (ब्रह्म. 48/117-118) ___ जो व्यक्ति दुर्बल या सबल बैल को विषम (ऊबड़-खाबड़) जगह में जोतता है, म उसे गो-हत्या के समान पाप होता है। जो बैल को घास खाने से रोकता है या बिना खिलाये * भूखे बैल को जोतता है, या अनजाने में ही घास खाने व जल पीने से बैल को रोकता हैम उसे भी गो-हत्या का पाप लगता है।
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{636} अष्टगव्यं धर्महलं षड्गवं वृत्तिलक्षणम्॥ चतुर्गवं नृशंसानां द्विगवं गोजिघांसुवत्। द्विगवं वाहयेत्पादं मध्याह्ने तु चतुर्गवम्॥ षड्गवं तु त्रियामाहेश्ष्टाभिः पूर्णं तु वाहयेत्। नाप्नोति नरकेष्वेवं वर्तमानस्तु वै द्विजः॥
(प.स्मृ. 2/8-10) आठ बैलों का हल धर्महल (उत्तम/श्रेष्ठ) होता है, और छ: बैलों से वृत्ति या ' * जीविका चलाने जैसा होता है। चार बैलों से निर्दयी लोगों के और दो बैलों से गौ की हत्या 卐 करने वालों के जैसा कर्म होता है। दो बैलों का हल हो, तो उसे प्रहर भर ही जोतना चाहिये, है और चार बैलों का हल हो तो दो प्रहर तक ही। छः बैलों को तीन प्रहर तक तथा आठ बैलों
से पूरे दिन भर जोते। इस भांति (बैलों को अनुचित पीड़ा न देते हुए) जो द्विज कृषि-कार्य फ़ करता है, वह नरक में नहीं जाता।
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{637}
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ब्रह्महत्यासमं पापं तन्नित्यं वृषताडने। वृषपृष्ठे भारदानात्पापं तद्विगुणं भवेत्॥ सूर्यातपे वाहयेद्यः क्षुधितं तृषितं वृषम्। ब्रह्महत्याशतं पापं लभते नात्र संशयः॥
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%%% %%%%%%% विदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/180