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{570} तथा न क्रीडयेत् कैश्चित् कलहाय भवेद्यथा। विनोदेऽपि शपेन्नैवं ते भार्या कुलटाऽस्ति किम्॥
(शु.नी. 3/312) क्रीडा अर्थात् मनोविनोद की ऐसी बात भी नहीं करनी चाहिये जिससे झगड़ा खड़ा हो जाय। जैसे-विनोद में भी ऐसा नहीं कहना चाहिये कि क्या तुम्हारी स्त्री कुलटा है?
___{571} लज्ज्यते च सुहृद् येन भिद्यते दुर्मना भवेत्॥ वक्तव्यं न तथा किंचिद्विनोदेऽपि च धीमता।
___ (शु.नी. 3/229-30) जिस वचन से मित्र लजित हो जाय या उसके मन में फर्क पड़ जाय या चित्त दुःखी है हो जाय, वैसे वचनों को विनोद में भी बुद्धिमान व्यक्ति को थोड़ा भी नहीं कहना चाहिये।
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{572} अनायसं मुने शस्त्रं मृदु विद्यामहं कथम्। येनैषामुद्धरे जिह्वां परिमृज्यानुमृग्य च॥ शक्त्याऽन्नदानं सततं तितिक्षाऽर्जवमार्दवम्। यथार्हप्रतिपूजा च शस्त्रमेतदनायसम्॥ ज्ञातीनां वक्तुकामानां कटुकानि लघूनि च। गिरा त्वं हृदयं वाचं शमयस्व मनांसि च॥
___(म.भा.12/81/20-22) ( श्रीकृष्ण का महर्षि नारद से जिज्ञासा-)मुने! बिना लोहे के बने हुए उस कोमल # शस्त्र को मैं कैसे जानूँ, जिसके द्वारा परिमार्जन और अनुमार्जन करके सब की जिह्वा को म उखाड़ लूँ (ऐसा अस्त्र बताइये जो हो बहुत ही कोमल, किन्तु जिससे सब का मुंह बन्द हो जाय)। (महर्षि नारद का श्रीकृष्ण को उत्तर-) श्रीकृष्ण! अपनी शक्ति के अनुसार सदा
अन्नदान करना, सहनशीलता, सरलता, कोमलता तथा यथायोग्य पूजन (आदर-सत्कार) म करना-यही बिना लोहे का बना हुआ शस्त्र है। जब सजातीय बन्धु आपके प्रति कड़वी तथा ई म ओछी बातें कहना चाहें, उस समय आप मधुर वचन बोलकर उनके हृदय, वाणी तथा मन ॥ * को शान्त कर दें। 明明明明明明明明明明明明明男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男男、
अहिंसा कोश/161]
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