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____{568} श्लक्ष्णां वाणी निराबाधां मधुरां पापवर्जिताम्। स्वागतेनाभिभाषन्ते ते नराः स्वर्गगामिनः॥ परुषं ये न भाषन्ते कटुकं निष्ठरं तथा। अपैशुन्यरताः सन्तस्ते नराः स्वर्गगामिनः॥ पिशुनां न प्रभाषन्ते मित्रभेदकरी गिरम्। ऋतं मैत्रं तु भाषन्ते ते नराः स्वर्गगामिनः॥
(म.भा.13/144/21-23; ब्रह्म 116/20-22) (शिव का पार्वती से वाणी-धर्म का कथन-)जो स्नेह-पूर्ण, मधुर, बाधा-रहित और पापशून्य तथा स्वागत सत्कार के भाव से युक्त वाणी बोलते हैं, वे मानव स्वर्ग-लोक 9 में जाते हैं। जो किसी की चुगली नहीं खाते और कभी किसी से रूखी, कड़वी और म निष्ठुरतापूर्ण मुँह से बात नहीं निकालते, वे सज्जन पुरुष स्वर्ग में जाते हैं। जो दो मित्रों में
फूट डालने वाली चुगली की बातें नहीं करते हैं, सत्य और मैत्री भाव से युक्त वचन बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं।
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ये वर्जयन्ति परुषं परद्रोहं च मानवाः। सर्वभूतसमा दान्तास्ते नराः स्वर्गगामिनः॥ शठप्रलापाद् विरता विरुद्धपरिवर्जकाः। सौम्यप्रलापिनो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥ न कोपाद् व्याहरन्ते ये वाचं हृदयदारणीम्। सान्त्वं वदन्ति क्रुद्धाऽपि ते नराः स्वर्गगामिनः॥ एष वाणीकृतो देवि धर्मः सेव्यः सदा नरैः।
(म.भा.13/144/24-27; ब्रह्म. 116/23-26) : ____ जो मानव दूसरों से तीखी बातें बोलना और द्रोह करना छोड़ देते हैं, सब प्राणियों के प्रति समान भाव रखने वाले और जितेन्द्रिय होते हैं, वे स्वर्ग-लोक में जाते हैं। जिनके 9 मुँह से कभी शठतापूर्ण बात नहीं निकलती, जो विरोधयुक्त वाणी का परित्याग करते हैं और ॥ * सदा सौम्य (कोमल) वाणी बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो क्रोध में आ कर भी ॐ हृदय को विदीर्ण करने वाली बात मुँह से नहीं निकालते हैं तथा क्रुद्ध होने पर भी सान्त्वनापूर्ण है ॐ वचन ही बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। यह वाणी-जनित (अहिंसा-समन्वित)धर्म है
बताया गया है। 勇勇%%%%%%%%%%%%% %%%%%% %%% % %%%%% % वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/160
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