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अहिंसक की वाणीः प्रिय व हितकर हो
{543} सर्वभूतदयावन्तो अहिंसानिरताः सदा॥ परुषं च न भाषन्ते सदा सन्तो द्विजप्रियाः।
(म.भा. 3/207/84-85) जो समस्त प्राणियों पर दया करते, सदा अहिंसा-धर्म के पालन में तत्पर रहते और कभी किसी से कटु वचन नहीं बोलते, ऐसे संत सदा समस्त द्विजों के प्रिय होते हैं।
{544} अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुपालनम्। वाक् चैव मधुरा ह्यस्याः प्रयोज्या धर्मकांक्षिणा॥
(वि. ध. पु. 3/233/85; म. स्मृ. 2/159 में आंशिक परिवर्तन के साथ) जो धर्म का पालन करना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि वे 'अहिंसा' को अपना कर प्राणियों का कल्याण करें और मधुर वाणी बोलें।
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{545} परपरिवादः परिषदिन कथञ्चित् पण्डितेन वक्तव्यः। सत्यमपि तन्न वाच्यं यदुक्तमसुखावहं भवति॥
(पं.त. 3/114) विद्वान् व्यक्ति को सभा के सामने किसी की निन्दा नहीं करनी चाहिए और वह सत्य ॐ भी नहीं कहना चाहिए जो कहने पर किसी के लिए दुःखदायी या अप्रीतिकर हो।
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{546} सर्वलोकहितं कुर्यात् मृदुवाक्यमुदीरयेत्॥
(ना. पु. 1/24/21) सभी लोगों को हित करे और मृदु- कठोरतारहित वचन बोले।
{547 न वदेत् परपापानि।
(ना. पु. 1/26/28) दूसरों के पाप/अपराध का बखान न करे। % %%% %%%%%%%%%% %%% %%%%%%% %%% विदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/154
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