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___{531} कटुवाचा बान्धवांश्च खलत्वेन च यो नरः। दग्धान्करोति बलवान्वह्निकुण्डं प्रयाति सः॥
(ब्र.वै.पु. 2/30/2) जो बलवान् खल पुरुष अपनी दुष्टता के नाते कटु वाणी द्वारा बान्धवों को जलाया करता है, वह 'अग्नि कुण्ड' नामक नरक में जाता है।
{532} यस्मादुद्विजते लोकः सर्वो मृत्युमुखादिव। वाक्क्रूराद् दण्डपरुषात् स प्राप्नोति महद् भयम्॥
(म.भा. 12/262/18) जैसे सब लोग मौत के मुख में जाने से डरते हैं, उसी प्रकार जिसके स्मरणमात्र से सब लोग उद्विग्न हो उठते हैं तथा जो कटुवचन बोलने वाला और दण्ड देने में कठोर है, ऐसे क मनुष्य को महान् भय का सामना करना पड़ता है।
{533}
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कामं दुग्धे विप्रकर्षत्यलक्ष्मी कीर्तिं सूते दुर्लदो निष्पलाति। शुद्धां शान्तां मातरं मङ्गलानां धेनुं धीराः सूनृतां वाचमाहुः॥
(उ.रा. 5/31) सत्य और प्रिय (सूनृता) वाणी मनोरथ को पूर्ण करती है, अलक्ष्मी (दरिद्रता)का ॐ परिहार करती है, कीर्ति को उत्पन्न करती है और शत्रुओं का विनाश करती है। इसी कारण,
सुधीजन ऐसी वाणी को शुद्ध, शान्त, कल्याण (मंगल) कार्यों की जननी और कामधेनु के समान बताते हैं।
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{534} मर्माण्यस्थीनि हृदयं तथासून रूक्षा वाचो निर्दहन्तीह पुंसाम्। तस्माद् वाचमुषतीं रूक्षरूपां धर्मारामो नित्यशो वर्जयीत॥
___ (म.भा. 5/36/7, विदुरनीति 4/7) इस जगत में रूखी बातें मनुष्यों के मर्मस्थान, हड्डी, हृदय तथा प्राणों तक दग्ध है म करती रहती हैं; इसलिये धर्मानुरागी पुरुष जलानेवाली रूखी बातों का सदा के लिये 卐 परित्याग कर दे।
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अहिंसा कोश/151]