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{401} मार्दवं सर्वभूतानामनसूया क्षमा धृतिः। आयुष्याणि बुधाः प्राहुर्मित्राणां चाविमानना॥
(म.भा. 5/39/52) सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति कोमलता का भाव, गुणों में दोष न देखना, क्षमा, धैर्य और मित्रों का अपमान न करना-ये सब गुण आयु को बढ़ाने वाले हैं-ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं। मैं
{4021 न वाच्यः परिवादोऽयं न श्रोतव्यः कथञ्चन। कर्णावथ पिधातव्यौ प्रस्थेयं चान्यतो भवेत्॥ असतां शीलमेतद् वै परिवादोऽथ पैशनम्। गुणानामेव वक्तारः सन्तः सत्सु नराधिप॥
____ (म.भा.12/132/12-13) किसी की भी निन्दा नहीं करनी चाहिये और न उसे किसी प्रकार सुनना ही चाहिये। # यदि कोई दूसरे की निन्दा करता हो, तो वहाँ अपने कान बंद कर ले अथवा वहाँ से उठकर ॐ अन्यत्र चला जाय। दूसरों की निन्दा करना या चुगली खाना यह दुष्टों का स्वभाव ही होता
है। श्रेष्ठ व सज्जन पुरुष तो सज्जनों के समीप दूसरों के गुण ही गाया करते हैं।
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{403} परवाच्येषु निपुणः सर्वो भवति सर्वदा। आत्मवाच्यं न जानीते जानन्नपि च मुह्यति।।
(म.भा. 8/45/44) दूसरों के दोष को बताने में सभी लोग सदा निपुण होते हैं, परन्तु उन्हें अपने दोषों की पता नहीं होता या फिर वे उन्हें जान कर भी अनजान बने रहते हैं।
{404} न चक्षुषा न मनसा न वाचा दूषयेदपि। न प्रत्यक्षं परोक्षं वा दूषणं व्याहरेत् कचित्॥
(म.भा.12/278/4) न नेत्र से, न मन से और न वाणी से ही वह दूसरे के दोष देखे, सोचे या कहे। भकिसी के सामने या परोक्ष में पराये दोष की चर्चा कहीं न करे। %%%%%%%男男男男男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%%
अहिंसा कोश/113]