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{419} अभक्ष्यमेतदिति वै इति हिंसा निवर्तते। खादकार्थमतो हिंसा मृगादीनां प्रवर्तते॥
(म.भा. 13/115/30) यदि मांस को अभक्ष्य समझकर सब लोग उसे खाना छोड़ दें तो पशुओं की हत्या स्वतः ही बंद हो जाय; क्योंकि मांस खानेवालों के लिये ही तो मृग आदि पशुओं की हत्या होती है।
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{420} ऋषयो ब्राह्मणा देवाः प्रशंसन्ति महामते। अहिंसालक्षणं धर्मं वेदप्रामाण्यदर्शनात्॥ कर्मणा मनुजः कुर्वन् हिंसां पार्थिवसत्तम। वाचा च मनसा चैव कथं दुःखात् प्रमुच्यते॥
___(म.भा.13/114/2-3) (युधिष्ठिर का भीष्म से प्रश्न-) वैदिक प्रमाण के अनुसार देवता, ऋषि और ब्राह्मण ॐ सदा अहिंसा-धर्म की प्रशंसा किया करते हैं। अतः नृपश्रेष्ठ ! मैं पूछता हूं कि मन, वाणी और क्रिया से भी हिंसा का ही आचरण करने वाला मनुष्य किस प्रकार उसके दुःख से छुटकारा पा सकता है?
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{421} विकारणं तु निर्दिष्टं श्रूयते ब्रह्मवादिभिः। मनो वाचि तथाऽऽस्वादे दोषा ह्येषु प्रतिष्ठिताः॥ न भक्षयन्त्यतो मांसं तपोयुक्ता मनीषिणः।
__ (म.भा. 13/114/9-10) (भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को उत्तर-)ब्रह्मवादी महात्माओं ने हिंसा-दोष के प्रधान तीन कारण बतलाये हैं-मन (मांस खाने की इच्छा), वाणी (मांस खाने का उपदेश) और आस्वाद ( प्रत्यक्षरूप में मांस का स्वाद लेना)। ये तीनों ही हिंसा-दोष के आधार हैं। इसलिये तपस्या में लगे हुए मनीषी पुरुष कभी मांस नहीं खाते हैं।
明明明明明明明明明明明宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪宪、 वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/118