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वर्जयेन्मधु मांसं च गन्धं माल्यं रसान् स्त्रियः ।
शुक्तानि यानि सर्वाणि प्राणिनां चैव हिंसनम् ।।
(म.स्मृ. 2/177) [ द्रष्टव्य: ग.पु. 1/94/19; अ.पु. 153/14] (ब्रह्मचारी) मधु (शहद), मांस, सुगन्धित ( कपूर, कस्तूरी आदि) पदार्थ, फूलों माला, रस ( गन्ना- जामुन आदि का सिरका आदि), स्त्री, अचार आदि का भक्षण और जीव-हिंसा (किसी प्रकार से जीवों को कष्ट पहुंचाना ) - इन्हें छोड़ दे।
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मधुमांसाञ्जनोच्छिष्टशुक्तस्त्रीप्राणिहिंसनम् । भास्करालोकनालीलपरिवादादि वर्जयेत् ॥
(या. स्मृ., 1/2/33)
मधु व मांस का सेवन (घृतादि से शरीर की मालिश तथा काजल से आंख का ) अंजन, (गुरु के अतिरिक्त अन्य का) जूठा भोजन खाना, कठोर वचन बोलना, स्त्री - सेवन, प्राणिवध, (उदय तथा अस्त के समय) सूर्य को देखना, अश्लील (अवाच्य या असत्य) भाषण, परदोषान्वेषण- इन सब का ब्रह्मचारी त्याग करे ।
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वर्जयेन्मधु मांसं च भौमानि कवकानि च ।
(म.स्मृ. - 6 /9; प.पु. 3/58/12 ) (वानप्रस्थाश्रमी को चाहिए कि वह) मधु (शहद), मांस, पृथ्वी में उत्पन्न छत्राक (कुकुरमुत्ता) - इन का त्याग करे ( इन्हें नहीं खावे ) ।
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ब्रह्मचर्यात् परं तात मधुमांसस्य वर्जनम् । मर्यादायां स्थितो धर्मः शमश्चैवास्य लक्षणम् ॥
(म.भा. 13/22/25) 1
मांस और मदिरा का त्याग ब्रह्मचर्य से भी श्रेष्ठ है- वही उत्तम ब्रह्मचर्य है । वेदोक्त मर्यादा में स्थित रहना सबसे श्रेष्ठ धर्म है तथा मन और इन्द्रियों को संयम में रखना ही सर्वोत्तम पवित्रता है।
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अहिंसा कोश / 125]