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{463}
मांसभक्षणहीनस्य सदा सानुग्रहा ग्रहाः ।
(fa. &. y. 1/106/12)
जो मांस नहीं खाता, उस पर सभी ग्रहों का सदैव अनुग्रह रहता है ।
{464}
निवृत्ता मधुमांसेभ्यः परदारेभ्य एव च । निवृत्ताश्चैव मद्येभ्यस्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जो मद्य, मांस, मदिरा और पर- स्त्री इन से दूर रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्ग लोक में जाते हैं।
{465}
सप्तर्षयो बालखिल्यास्तथैव च मरीचिपाः । अमांसभक्षणं राजन् प्रशंसन्ति मनीषिणः ॥
( म.भा. 12/23/89)
(म.भा. 13/115/9 ) सप्तर्षि, बालखिल्य तथा सूर्य की किरणों का पान करने वाले अन्यान्य मनीषी महर्षि मांस न खाने (के व्रत) की ही प्रशंसा करते हैं।
{466}
अधृष्यः सर्वभूतानां विश्वास्यः सर्वजन्तुषु । साधूनां सम्मतो नित्यं भवेन्मांसं विवर्जयन् ।।
( म.भा. 13 / 115 / 11 )
जो पुरुष मांस का परित्याग कर देता है, उसका कोई भी प्राणी तिरस्कार नहीं करता है, वह सब प्राणियों का विश्वासपात्र हो जाता है तथा श्रेष्ठ पुरुष उसका सदा सम्मान करते हैं।
{467}
अधृष्यः सर्वभूतानामायुष्मान् नीरुजः सदा । भवत्यभक्षयन् मांसं दयावान् प्राणिनामिह ॥
( म.भा. 13/115/40)
जो व्यक्ति मांस नहीं खाता और इस जगत् में सब जीवों पर दया करता है, उसका कोई भी प्राणी तिरस्कार नहीं करता और वह सदा दीर्घायु एवं नीरोग होता है ।
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अहिंसा कोश / 131]