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{211) नान्योऽन्यं हिंस्याताम्।
(श.प.3/4/1/24) परस्पर एक दूसरे को हिंसित अर्थात् पीड़ित नहीं करना चाहिए।
{212} नेदमन्योऽन्यं हिनसात।
(श.प. 1/1/4/5)
(मनुष्य) एक-दूसरे का हनन न करें।
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{213} इमाँल्लोकाञ्छान्तो न हिनस्ति।
(श.प.3/6/4/13) शान्त पुरुष किसी भी प्राणी की हिंसा (पीड़ा देने आदि कार्य) नहीं करते हैं।
{214} प्राणिहिंसां न कुर्वीत॥
(प.पु. 5/10/56) प्राणियों की हिंसा न करें।
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___{215} अहिंसालक्षणो धर्म इति धर्मविदो विदुः। यदहिंसात्मकं कर्म तत् कुर्यादात्मवान् नरः॥
(म.भा.13/116/12) धर्मज्ञ पुरुष यह जानते हैं कि अहिंसा ही धर्म का लक्षण है। मनस्वी पुरुष वही कर्म करें, जो अहिंसात्मक हो।
{216}
यत् तपो दानमार्जवमहिंसा सत्यवचनमिति ता अस्य दक्षिणाः।
(छांदो. 3/17/4) जो व्यक्ति तप, दान, ऋजुता,अहिंसा और सत्य वचन में जीवन व्यतीत करता है, # उसका जीवन 'दक्षिणा' (यज्ञ की पूर्णता) का जीवन है।
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अहिंसा कोश/69]