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{376} अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत।
(अ. 3/30/3) एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक मधुर संभाषण करते हए आगे बढ़े चलो।
{377} जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्॥
(अ.3/30/2)
पत्नी पति के साथ मधुर सुखदायिनी वाणी बोले।
{378} सम्यञ्चः सव्रता भूत्वा, वाचं वदत भद्रया॥
(अ3/30/5)
भाई-बहन आदि सभी परस्पर कल्याणकारी शिष्ट भाषण करें।
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乐乐乐步听听听听听听听听听听织玩乐听听听听听听听乐乐听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听
{379} उदीरत सूनृता उत्पुरन्धी रुदग्नयः शुशुचानासो अस्थुः।
(ऋ. 1/123/6) हमारे मुख से प्रिय एवं सत्य वाणी मुखरित हो, हमारी प्रज्ञा उन्मुख-प्रबुद्ध हो, सत्कर्म के लिए हमारा अत्यन्त दीप्यमान तेजस्तत्व (संकल्प बल) पूर्ण रूपेण प्रज्वलित हो।
{380}
घृतात् स्वादीयो मधुनश्च वोचत।
(ऋ. 8/24/20)
घृत और मधु से भी अत्यन्त स्वादु वचन बोलिए।
{381} मा वो वचांसि परिचक्ष्याणि वोचम्।
(सा.1/6/3/9/610)
मैं त्याज्य अर्थात् निन्द्य वचन नहीं बोलता।
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%%%%%%%%%%%%%%%%%%% वैिदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/108