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{342} स्वस्तिर्मानुषेभ्यः।
(तैत्ति.आ.1/9) (अहिंसक की प्रशस्त भावना)- मानव-जाति का कल्याण हो।
{343} कोमलं हृदयं नूनं साधूनां नवनीतवत्। वह्निसंतापसंतप्तं तद्यथा द्रवति स्फुटम्॥
(प.पु. 5/101/31-32) साधु/सज्जन व्यक्तियों का हृदय नवनीत के समान कोमल होता है जो दूसरों के संताप/दुःख रूपी आग के कारण द्रवित हो जाता है।
अहिंसा की अभिव्यक्ति: परोपकार/अनुग्रह/ पर-कल्याण
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___{344} परोपकारेऽविरतं स्वभावेन प्रवर्तते। यः स साधुरिति प्रोक्तः प्रमाणं त्वस्य चेष्टितम्॥
(यो.वा.निर्वाण (4)197/10) जो निरन्तर परोपकार में सहज भाव से प्रवृत्त रहता है, वह साधु/सज्जन कहा गया त है। उसकी चेष्टा सब लोगों के लिए प्रमाण होती है अर्थात् सब लोगों की स्वभावतः + सन्मार्ग-प्रवृत्ति में साधुओं/सज्जनों का सदाचार-दर्शन ही कारण है।
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{345} शश्वत्परार्थसर्वेहः परार्थैकान्तसम्भवः । साधुः शिक्षेत भूभृद्भ्यो नगशिष्यः परात्मताम्॥
(भा.पु. 11/7/37-38) __ (अवधूत का राजा यदु से कथन-) साधु/सज्जन का कर्तव्य है कि जिनकी सारी ॥ चेष्टाएं सर्वदा दूसरों के लिये रहती हैं और जिनकी उत्पत्ति केवल परोपकार के लिये होती है, उन पर्वत तथा वृक्षों से परोपकार करना सीखे।
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% % अहिंसा कोश/101]