________________
MAEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
¥听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
{293} यस्मिन्कुले यः पुरुषः प्रधानः, स सर्वयत्नैः परिरक्षणीयः। तस्मिन्विनष्टे कुलसारभूते न नाभिषङ्गे डरयो वहन्ति॥
(पं.त. 1/314) कुल के प्रधान व्यक्ति की प्रत्येक उपाय से रक्षा करनी ही चाहिए। क्योंकि कुल के सार स्वरूप उस व्यक्ति के नष्ट हो जाने से शत्रु लोग उस कुल को पराजित कर देते हैं।
12947 नैकमिच्छेद् गणं हित्वा, स्याच्चेदन्यतरग्रहः। यस्त्वेको बहुभिः श्रेयान् कामं तेन गणं त्यजेत्॥
(म.भा. 12/83/12) एक ओर एक व्यक्ति (की सुरक्षा या हित-सिद्धि का प्रश्न) हो ओर दूसरी ओर एक समूह (की) सुरक्षा या हित-सिद्धि का प्रश्न हो तो समूह को छोड़कर एक व्यक्ति-विशेष ॐ को ग्रहण करना (अर्थात् उसकी रक्षा को महत्व देना) उचित नहीं है। परन्तु कभी एक
व्यक्ति विशेष बहुत मनुष्यों की अपेक्षा गुणों में श्रेष्ठ हो, और दोनों में से यदि किसी एक को ग्रहण करने का (उसकी रक्षा का) प्रश्र हो तो ऐसी परिस्थिति में एक (व्यक्ति-विशेष) के लिए समूह को त्याग देना चाहिए।
मानव-मात्र की रक्षा का भाव
{295}
पुमान् पुमासं परिपातु विश्वतः।
(ऋ. 6/75/14)
मनुष्य, मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करे।
{296}
विश्वे ये मानुषा युगा पान्ति मर्यं रिषः।
(ऋ.5/52/4)
सभी श्रेष्ठ जन सदैव दुष्टों से मनुष्यों की रक्षा करते हैं।
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%、
अहिंसा कोश/89]