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{309) बाधतां द्वेषो ,अभयं कृणोतु।
(ऋ.10/131/6)
द्वेष से दूर रहिए, सब को अभय बनाइए।
{310} सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च तपो दानानि चानघ। जीवाभयप्रदानस्य न कुर्वीरन्कलामपि॥
(भा.पु. 3/7/41) जीवों को अभयदान देने का जो पुण्य होता है, सब वेद, यज्ञ, तप तथा दान आदि उसके षोडशांश की भी बराबरी नहीं कर सकते।
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13111 सन्ति दानान्यनेकानि किं तैस्तुच्छफलप्रदैः। अभीतिसदृशं दानं परमेकमपीह न॥
(शि.पु. 2/5/5/21) स्वल्प फल प्रदान करने वाले दान अनेक प्रकार के हैं- परन्तु अभयदान करना जैसा # कोई दान नहीं है- इस लोक में।
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{312} भीतेभ्यश्चाभयं देयं व्याधितेभ्यस्तथौषधम्। देया विद्यार्थिनां विद्या देयमन्नं क्षुधातरे॥
__ (शि.पु. 2/5/5/23) भयभीत को अभयदान देना चाहिए, व्याधिग्रस्त को ओषधि-दान करना चाहिए। विद्यार्थी को विद्या दी जानी चाहिए और भूखे को अन्न दिया जाना चाहिए।
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भूताभयप्रदानेन सर्वकामानवाप्नुयात्। दीर्घमायुश्च लभते सुखी चैव तथा भवेत्।।
(सं. स्मृ., 53) प्राणियों को अभय दान देने से व्यक्ति समस्त कामनाओं की पूर्ति करता है, तथा ' दीर्घ आय पाता है और सखी होता है। %%%%%%%%%%%%%%男男男男明明明明明明明明明明明明明明明明男、
अहिंसा कोश/93]]