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{288} भ्रूणघ्नस्य न निष्कृतिः।
(ना. पु. 1/7/53)
भ्रूण-घातक का (अपने पाप से) कभी उद्धार नहीं हो पाता।
___{289} शस्त्रावपाते गर्भस्य पातने चोत्तमो दमः।
(अ.पु. 258/64) शस्त्र से प्रहार करने अथवा गर्भपात करने पर भी उत्तम साहस (1000 पणों का ) का दण्ड दिया जाता है।
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{290 नीचाभिगमनं गर्भपातनं भर्तृहिंसनम्। विशेषपतनीयानि स्त्रीणामेतान्यपि ध्रुवम्॥
(या. स्मृ., 3/6/297) नीच वर्ग के पास जाना, गर्भ गिराना, पति की हत्या-ये स्त्रियों को विशेष रूप से पतित करने वाले कर्म हैं।
[ऐसी स्त्री का परित्याग करना शास्त्र में बताया गया है। वह स्त्री तिरस्कृत/परित्यक्त रूप से किसी पास के दूसरे घर में रहते हुए, मात्र रोटी-पानी की हकदार होती है। (द्र.या.स्मृ. 3/6/296)]
{291}
गर्भपातनजा रोगा यकृत्प्लीहजलोदराः।
(शा. स्मृ., 104; प.पु. 5/48/47) गर्भ का पतन कराने के पाप से यकृत् व प्लीहा के और जलोदर रोग होते हैं।
रक्षणीयः प्रधान व श्रेष्ठ व्यक्ति
{292} संरक्षेद् बहुनायकम्।
(शु.नी. 3/163) जो बहुतों का नेता (या स्वामी) हो, उसकी रक्षा करनी चाहिए (ताकि उसके रक्षित # होने पर बहुतों का भरण-पोषण हो सके)।
वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/88