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___{264} रक्षेद् दारांस्त्यजेदीर्ध्या तथाऽन्हि स्वप्नमैथुने। परोपतापकं कर्म जन्तु-पीड़ां च सर्वदा।
___ (ब्रह्म. 113/74) गृहस्थ का कर्त्तव्य है कि वह स्त्रियों की रक्षा करे, ईर्ष्या छोड़े, दिन में निद्रा आदि न करे। साथ ही प्राणियों को पीड़ित करने एवं दूसरों को संताप देने वाला कार्य भी कदापि न करे।
{265}
अवध्यां स्त्रियमित्याहुः धर्मज्ञा धर्मनिश्चये।
___ (म.भा. 1/157/31) धर्मज्ञ विद्वानों ने धर्म-निर्णय के प्रसंग में नारी को अवध्य बताया है।
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{2663 प्रहरन्ति न वै स्त्रीषु कृतागस्वपि जन्तवः।
(भा.पु. 4/13/20) यदि स्त्रियों से कोई अपराध भी हो जाय, तो भी, और साधारण जीव भी, उन्हें नहीं
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मारते।
{267} पक्षिणां जलचराणां जलजानाञ्च घातनम्। कृमकीटानाञ्च। मद्यानुगत-भोजनम्। इति मलावहानि।
. (वि. स्मृ., मलिनीकरण-प्रशामन-वर्णन) पक्षियों, जलचरों और जल में उत्पन्न प्राणियों का घात करना, कृमि और कीड़ों को मारना एवं मद्य के साथ भोजन करना-ये मलावह पाप कहे जाते हैं।
___{268} स्त्रियो रक्ष्याः प्रयत्नेन, न हंतव्याः कदाचन। स्त्रीवधे कीर्तितं पापं मुनिभिर्धर्मतत्परैः॥
(दे. भा. 7/25/76) स्त्रियों को कभी नहीं मारना चाहिए, अपितु उनकी रक्षा करनी चाहिए। धर्मपरायण मनियों ने स्त्री-हत्या को पाप बताया है। 男男男男男男男男%%%%%%%%%%%%%%%%%% %% % % वैदिक ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/82