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{269} अध्या इति गवां नाम क एता हन्तुमर्हति। महच्चकाराकुशलं वृषं गां वाऽऽलभेत् तु यः॥
(म.भा.12/262/47) श्रुति (वेद) में गौओं को अघ्न्या (अवध्य) कहा गया है, फिर कौन उन्हें मारने का विचार करेगा? जो पुरुष गाय और बैलों को मारता है, वह महान् पाप करता है।
{270} गो-ब्राह्मणं न हिंस्यात्।
(म.भा.13/127/107)
गौ और ब्राह्मण का वध नहीं करे।
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अवध्या ब्राह्मणा गावो ज्ञातयः शिशवः स्त्रियः। येषां चान्नानि भुञ्जीत ये च स्युः शरणागताः॥
(म.भा. 5/36/66) ब्राह्मण, गौ, कुटुम्बी, बालक, स्त्री, अन्नदाता और शरणागत- ये अवध्य होते हैं।
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{272} आचार्यं च प्रवक्तारं पितरं मातरं गुरुम्। न हिंस्याद् ब्राह्मणान् गांश्च सर्वांश्चैव तपस्विनः॥
(म.स्मृ. 4/162) आचार्य, वेदादिका व्याख्यानकर्ता, पिता, माता, गुरु, ब्राह्मण, गौ और सब (प्रकार के) तपस्वी-इनकी गृहस्थ कभी हिंसा ( अर्थात् इनके प्रतिकूल आचरण) न करे।
{273} अवध्याश्च स्त्रियः प्राहुः, तिर्यग्योनिगतेष्वपि॥ __ (ब्र.पु. 2/36/185; ब्रह्म 2/80; प.पु. 2/28/118
में आंशिक परिवर्तन के साथ) स्त्रियां, भले ही वे पशु-योनि में ही क्यों न हों, अवध्य मानी गई हैं।
अहिंसा कोश/83]