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{278} भ्रूणधाऽवेक्षितं चैव संस्पृष्टं चाप्युदक्यया। पतत्रिणाऽवलीढंच शुना संस्पृष्टमेव च॥
(म.स्मृ. 4/208) गर्भहत्या करने वाले से देखा हुआ या स्पर्श किया गया, पक्षी (कौवा आदि) से आस्वादित और कुत्ते से छूआ या अन्न-इन्हें कभी नहीं खावे।
{279) अन्नादे भ्रूणहा मार्टि।
(म.स्मृ.-8/317) भूण-हत्यारा अपना पाप उसे दे देता है जो उसका अन्न खाता है। (अर्थात् उसका अन्न खाने वाला भी पाप का भागी होता है।)
{280)
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भ्रूणं च घातयेद्यस्तु शिशुं वा आतुरं गुरुम्। ब्रह्महा स्वयमेव स्यात्.....॥
(प.पु. 1/48/53) जो भ्रूण-हत्या करावे, या किसी बालक, रोगी या गुरु का वध करावे, वह स्वयं ब्रह्मघाती है।
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{281} भ्रूणहा गुरुहन्ता च गोनश्च मुनिसत्तमाः। यान्ति ते रौरवं घोरम्॥
(ब्रह्म. 19/8) भ्रूण-घातक, गुरु-घातक और गो-घातक घोर रौरव नरक में जाते हैं।
{282} भ्रूणहा निवसेच्चण्डे।
(स्कं. पु. 1/(3)/5/12) भ्रूण-हत्या करने वाला 'चण्ड' नामक नरक में निवास करता है। %%%%%%%%%%%%% %%%%%%%%%% %%% %%%%%% %
अहिंसा कोश/85]]