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{217} मा हिंसीः पुरुषं जगत्।
(श्वेता. 3/6)
जगत् में किसी पुरुष (प्राणी) की हिंसा मत करो।
___{218} अहिंस्रः सर्वभूतानां मैत्रायणगतश्चरेत्॥
___ (म.भा.12/189/12; ना. पु. 1/43/75) किसी भी प्राणी की हिंसा न करे, सब के साथ मैत्रीपूर्ण बर्ताव करे।
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{219) न हिंस्यात् सर्वभूतानि मैत्रायणगतश्चरेत्। नेदं जीवितमासाद्य वैरं कुर्वीत केनचित्॥ (म.भा.12/278/5, 3/213/34; ना. पु. 1/60/53-54
में आंशिक परिवर्तन के साथ) ___ मुमुक्षु पुरुष समस्त प्राणियों में से किसी की भी हिंसा न करे-किसी को भी पीड़ा # न दे। सबके प्रति मित्रभाव रखकर विचरता रहे। इन नश्वर जीवन को लेकर किसी के साथ
शत्रुता न करे।
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{220} न हिंस्याद्भूतजातानि न शपेन्नानृतं वदेत्।
(भा.पु. 6/18/47) (महर्षि कश्यप की उक्ति-)व्रत-पालन करते समय, साधक को चाहिए कि वह कभी किसी प्राणी की किसी भी तरह हिंसा न करे, झूठ न बोले।
____{221} सत्यमार्जवमक्रोधमनसूयां दमं तपः। अहिंसां चानृशंस्यं च विधिवत् परिपालय॥
(म.भा.12/321/5) सत्य, सरलता, अक्रोध, किसी का दोष न देखना, इन्द्रिय-संयम, तप, अहिंसा और ॐ दया आदि धर्मों का विधिपूर्वक पालन करो।
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% %% %% % विदिक/ब्राह्मण संस्कृति खण्ड/70