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____{252} तितिक्षया करुणया मैत्र्या चाखिलजन्तुषु। समत्वेन च सर्वात्मा भगवान्यं प्रसीदति॥
(भा.पु. 4/11/13) . सभी प्राणियों के प्रति सहनशीलता, दया, मित्रता और समता का भाव रखने वाले पर सर्वात्मा भगवान् प्रसन्न होते हैं।
{253}
मानसं सर्वभूतानां धर्ममाहुर्मनीषिणः। तस्मात् सर्वेषु भूतेषु मनसा शिवमाचरेत्॥
(म.भा.12/193/31) मनीषी पुरुषों का कथन है कि समस्त प्राणियों के लिये मन द्वारा किया हुआ है क (अहिंसा) धर्म ही श्रेष्ठ है; अतः मन से सम्पूर्ण जीवों का कल्याण ही सोचता रहे।
{254}
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सर्वभूतसमत्वेन निर्वैरेणाप्रसङ्गतः। ब्रह्मचर्येण मौनेन स्वधर्मेण बलीयसा॥ यदृच्छयोपलब्धेन संतुष्टो मितभुङ् मुनिः। विविक्तशरणः शान्तो मैत्रः करुण आत्मवान्॥
(भा.पु. 3/27/7-8) मुमुक्षु पुरुष प्राणिमात्र को समदृष्टि से देखे, वैर-भाव न रक्खे, आसक्ति से बचा 卐 रहे, ब्रह्मचर्य और मौनव्रत का पालन करे, ईश्वरार्पण- बुद्धि से धर्म-कर्म करे। जो कुछ है भ मिल जाय, उसी में सन्तुष्ट रहे, आहार परिमित किया करे, मनन करने की आदत डाले, + एकान्तवास किया करे, चित्त में अशान्ति न आने दे, और वह लोकहितचिन्तक, दयालु व 卐 धैर्यवान् हो।
{255} यदा न कुरुते भावं सर्वभूतेष्वमंगलम्। समदृष्टेस्तदा पुंसः सर्वाः सुखमया दिशः॥
(भा.पु. 9/19/15; वि. पु. 4/10/25 में आंशिक परिवर्तन के साथ) जब मनुष्य सब प्राणियों के प्रति अमंगल/अप्रशस्त विचार नहीं रखता, तब उस ॐ समदर्शी के लिये सब दिशाएं आनन्ददायिनी हो जाती हैं। 野野野野野野乃乃西野筑西巧野野野野野野野野乃万頭筋浜野野野野野野野野野、
अहिंसा कोश/79]