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{106} भूतेषु बद्धवरस्य न मनः शान्तिमृच्छति।
(भा. पु. 3/29/23) ___ जो अन्य प्राणियों के साथ वैरभाव रखता है, उसके मन को कभी शान्ति नहीं मिल सकती।
{107}
दुष्टं हिंसायाम्।
(वै.द. 6/1/7) हिंसा के कारण अच्छे-से-अच्छा साधक भी दुष्ट (मलिन) हो जाता है।
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{108} शास्त्रदृष्टानविद्वान् यः समतीत्य जिघांसति॥ स पथः प्रच्युतो धर्मात् कुपथे प्रतिहन्यते।
__ (म.भा. 10/6/20-21) शास्त्रदर्शी पुरुषों की आज्ञा का जो मूर्ख उल्लङ्घन करके दूसरों की हिंसा करना * चाहता है, वह धर्ममार्ग से भ्रष्ट हो कुमार्ग में पड़ कर स्वयं ही मारा जाता है।
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{109)
भूतानि येऽत्र हिंसन्ति जलस्थलचराणि च। जीवनार्थं च ते यान्ति कालसूत्रं च दुर्गतिम्॥
(प.पु. 3/31/30) जो जलचर या स्थलचर प्राणियों को अपनी जीविका के लिए मारते हैं, वे 'कालसूत्र' नरक में दुर्गति को प्राप्त करते हैं।
{110)
अदत्तादाननिरतः परदारोपसेवकः। हिंसकश्चाविधानेन स्थावरेष्वभिजायते॥
(या. स्मृ., 3/4/136) चोरी करने वाला, पर-स्त्री का सेवन करने वाला तथा (शास्त्रीय विधि के विरुद्ध) 3 हिंसा करने वाला मर कर स्थावर (वृक्ष, लता आदि अधम कोटि) की योनि में जन्म लेता है।
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विदिक/बाह्मण संस्कृति खण्ड/30