________________
{176} जानता तु कृतं पापं गुरु सर्वं भवत्युत। अज्ञानात् स्वल्पको दोषः प्रायश्चित्तं विधीयते॥
(म.भा.12/35/45) जान-बूझकर किया हुआ सारा पाप भारी होता है और अनजान में वैसा पाप बन * जाने पर कम दोष लगता है। इस प्रकार भारी और हल्के पाप के अनुसार ही उसके प्रायश्चित्त
का विधान है।
*
明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听玩玩乐乐听听听听听听听听听听见
{177} अज्ञानात् तु कृतां हिंसामहिंसा व्यपकर्षति। ब्राह्मणाः शास्त्रनिर्देशादित्याहुब्रह्मवादिनः॥ तथा कामकृतं नास्य विहिंसैवानुकर्षति। इत्याहुब्रह्मशास्त्रज्ञा ब्राह्मणा ब्रह्मवादिनः॥
___ (म.भा.12/291/12-13) अनजान में जो हिंसा हो जाती है, उसे अहिंसा-व्रत का पालन दूर कर देता है। ब्रह्मवादी ब्राह्मण शास्त्र की आज्ञा के अनुसार ऐसा ही कहते हैं; किन्तु स्वेच्छा से जान बूझ # कर किये हुए हिंसामय पापकर्म को अहिंसा का व्रत भी दूर नहीं कर सकता। ऐसा वेद
शास्त्रों के ज्ञाता और वेद का उपदेश देने वाले ब्राह्मणों का कथन है।
5555555555555555555555
अहिंसा कोश/57]