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(क्षमा आदिः देवी के स्वरूप)
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त्वया युक्तः शिवोऽहं च, सर्वेषां शिवदायकः । त्वया विना हीश्वरश्च शवतुल्यो ऽशिवः सदा ॥ प्रकृतिस्त्वं च बुद्धिस्त्वं शक्तिस्त्वं च क्षमा दया । तुष्टिस्त्वं च तथा पुष्टिः शान्तिस्त्वं क्षान्तिरेव च ॥
(ब्र.वै. 3/2/11-12 ) (शिव का देवी पार्वती को कथन ) हे देवि! तुम से युक्त होकर ही मैं 'शिव' हूं और सब के लिए कल्याणकारी हूं। तुम्हारे बिना मैं 'शिव' न होकर 'शव' हूं और अकल्याणकारी हूं। तुम प्रकृति, बुद्धि, शक्ति, क्षमा, दया, तुष्टि, पुष्टि, शान्ति व सहिष्णुता हो ।
अहिंसक ही 'वैष्णव' एवं ईश्वर-भक्त
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हिंसादम्भकामक्रोधैर्वर्जिताश्चैव ये नराः । लोभमोहपरित्यक्ता ज्ञेयास्ते वैष्णवा द्विज ॥ पितृभक्ता दयायुक्ताः सर्वप्राणिहिते रताः । अमत्सरा वैष्णवा ये विज्ञेयाः सत्यभाषिणः ॥
(प.पु.1/21-22)
वैष्णव भक्त की पहचान यह है कि वे हिंसा, दम्भ, काम, क्रोध-इनसे रहित होते हैं, लोभ व मोह को छोड़ चुके होते हैं, पितृभक्त, दयालु, सभी प्राणियों के हित में संलग्न, मात्सर्य-हीन एवं सत्यवादी होते हैं ।
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शौचसत्यक्षांतियुक्तो रागद्वेषविवर्जितः । वेदविद्याविचारज्ञो यः स वैष्णव उच्यते ॥
का ज्ञाता व्यक्ति 'वैष्णव' कहलाता है।
[ वैदिक / ब्राह्मण संस्कृति खण्ड / 62
( प.पु. 6 (उत्तर) /82/4)
शौच, सत्य व क्षमा से युक्त, राग व द्वेष से रहित और वेद-विद्या सम्बन्धी विचार
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